भारत में कृषि की स्थिति, उत्पादकता, प्रमुख उत्पादक राज्य

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भारत में कृषि की स्थिति, उत्पादकता, प्रमुख उत्पादक राज्य

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी 54.6 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर प्रत्यक्ष तोर पर निर्भर है। 
भारत में कृषि एवं सम्बन्धित क्षेत्र का योगदान 1950-51 में 53.1% था जो 2014-15 में सकल घरेलू उत्पादन का 17.5% रहा
भारतीय कृषि की मानसून पर निर्भरता के कारण भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था को मानसून का जुआ कहते हैं। 
भारत के कुल निर्यात में कृषि का महत्त्वपूर्ण स्थान रहता है। 
देश के कुल निर्यात मूल्य का 12.7 प्रतिशत के लगभग कृषि उत्पादों से प्राप्त होता है।
उत्कृष्ट भौगोलिक स्थिति, समतल भूमि, उपजाऊ मृदा, पर्याप्त जलापूर्ति, मानसूनी जलवायु जैसे कारकों ने भारत को कृषि के क्षेत्र में विशिष्ट देश बना दिया है।
भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी. है उसके 40.5 प्रतिशत भाग पर कृषि कार्य होता है। 
इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत में कृषि पद्धतियों एवं फसलों में भी विविधता दिखाई देती है।
भारतीय कृषि का महत्त्व निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है-
1. सर्वाधिक रोजगार का साधन 
2. उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति 
3. राष्ट्रीय आय का साधन 
4. विदेशी मुद्रा की प्राप्ति 
5. पोष्टिक पदार्थों का उत्पादन
6. यातायात संसाधनों का विकास 

भारतीय कृषि की विशेषताएँ :

1. जनसंख्या की निर्भरता 
2. मानसून पर निर्भरता 
3. सिंचाई की सुविधाओं का अभाव 
4. प्रति हेक्टयर कम उत्पादन 
5. चारा फसलों की कमी 
6. कृषि जोतों का छोटा आकार 
7. खाद्यान्नों की प्रधानता
8. फसलों की विविधता 

भारतीय कृषि की मुख्य समस्याएँ

1. भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता हुआ भार 
2. भूमि का असन्तुलित वितरण 
3. कृषि की न्यून उत्पादकता 
4. मौसम की मार, कभी अति वृष्टि, अनावृष्टि 
5. किसान का भाग्यवादी दृष्टिकोण 
6. कृषि व्यवसाय के रूप में न लेकर जीवन यापन के रूप में है। 
7. सिंचाई के साधनों का सीमित विकास।
8. कृषि का अशिक्षित एवं परम्परावादी होना। 
9. उचित विक्रय व्यवस्था का लाभ न मिलना। 
10. विभिन्न योजनाओं का सामान्य किसान को लाभ नहीं पहुँचना आदि। 

कृषि के प्रकार

भारत की प्राकृतिक दशा, जलवायु, मिट्टी में पर्याप्त भिन्नता के कारण देश के विभिन्न भागों में कई प्रकार की कृषि की जाती है। 
भारत में मुख्यतः निम्न प्रकार की कृषि प्रचलित है। 

1. निर्वहन कृषि

भारत में जीवन निर्वहन कृषि एक परम्परागत कृषि विधि रही है। 
स्वतंत्रता पूर्व से यह जीवन निर्वहन करने वाली एक गहन कृषि के रूप में प्रचलित थी। 
उस समय किसान की जोत का आकार छोटा था और बैलों की सहायता से हल चलाकर खेती करता था। 
इन खेतों पर परिवार के सदस्य ही श्रमिक के रूप में कार्य करते थे। 
खेती करने का तरीका पुराना ही था। 
रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं किया जाता था। 
कृषि का मुख्य उद्देश्य परिवार की खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति करना ही रहता था। 

(अ) आदिम निर्वहन कृषि

आदिम निर्वहन कृषि को दो प्रकार में विभक्त किया जाता है -

1. स्थानान्तरित कृषि
स्थानान्तरित कृषि आज भी भारत वर्ष के कई क्षेत्रों में वनवासियों द्वारा आदिम कालीन ढंग से निर्वाह कृषि के रूप में की जाती है। 
ये कृषक केवल उतनी ही भूमि पर खेती करते है, जितने से उसके परिवार के जीवित रहने के लिए आवश्यक भोज्य मिल जाता है।
इसके अतिरिक्त वनों को जलाकर भूमि को साफ करके दो से तीन वर्षों तक फसलें उगाई जाती है और भूमि की उर्वरता नष्ट होने पर उसे परती छोड़ दिया जाता है। अन्यत्र जाकर पुनः इसी प्रक्रिया को अपनाया जाता है। 
2. स्थाई कृषि  
आदिवासी क्षेत्र जहाँ कृषि भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ जाता है वहाँ स्थानान्तरित कृषि का स्थान स्थाई कृषि लेने लगती है। 
इस प्रकार की कृषि स्थानान्तरित से उन्नत होती है और आवश्यकता से कुछ अधिक अन्न उत्पादन हो जाता है। 
भूमि की उर्वरता को बनाए रखने के लिए पशु खाद का उपयोग किया जाता है। 
कृषि के साथ पशुपालन भी किया जाता है। 

(ब) गहन निर्वहन कृषि

भारत के विशाल मैदान तथा तटीय मैदानों में यह कृषि की जाती है। 
पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल व कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूँ प्रमुख फसलों के रूप में बोई जाती है। 
इस प्रकार की कृषि में मानव श्रम का प्रयोग अधिक होता था, अब मशीनों का प्रयोग बढ़ रहा है। 
गहन निर्वहन कृषि में फसल आर्वतन भी किया जाता है।

(i) चावल प्रधान गहन निर्वहन कृषि : यह कृषि 100 सेमी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में होती है। 
यहाँ उर्वरक जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। 
मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश एवं तटीय मैदान है।
 इन सभी क्षेत्रों में चावल मुख्य फसल है जिसकी वर्ष में 2 या 3 बार फसल उत्पादित की जाती है।

(ii) गेहूँ प्रधान गहन निर्वहन कृषि : यह कृषि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी भागों में प्रचलित है। 
इन क्षेत्रों में वर्षा की कमी के कारण चावल के स्थान पर गेहूँ की खेती की जाती है। 
कपास, ज्वार, बाजरा, दालें आदि फसलें भी उगाई जाती है। 

2. व्यापारिक कृषि

व्यापारिक कृषि के अन्तर्गत निर्यात की दृष्टि से अतिरिक्त उत्पादन किया जाता है। 
परिवहन, यातायात व संचार के साधनों के विकास के साथ-साथ निर्भरता बढ़ी है। 
इस प्रकार की कृषि में कई फसलों के स्थान पर भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल एक ही फसल का उत्पादन, बढ़ाकर निर्यात से आय में वृद्धि करने का प्रयास किया जाता है।
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल आदि राज्यों में इस प्रकार की कृषि का प्रचलन बढ़ रहा है।

3. आर्द्र कृषि

आर्द्र कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ फसलों के लिए आवश्यक मात्रा में अथवा उससे अधिक वर्षा होती है। 
सामान्यतः इन क्षेत्रों में वर्षा का औसत 100 से 200 सेमी तक रहता है। 
गंगा की मध्यवर्ती घाटी, प्रायद्वीप भारत के उत्तर पूर्वी भागों एवं तटीय आर्द्र क्षेत्रों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। 
इन क्षेत्रों में वर्ष में दो तथा कहीं-कहीं तीन फसलें तक प्राप्त की जा सकती है। 
उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग से अरूणाचल प्रदेश तक आर्द्र कृषि की जाती है।

4. शुष्क कृषि

शुष्क कृषि भारत के उन क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ वार्षिक वर्षा 50 सेमी से कम होती है साथ ही सिंचाई की सुविधाओं का भी अभाव है। 
कृषि की इस पद्धति में उपलब्ध जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाता है, फुव्वारों द्वारा सिंचाई स्प्रिंकलर सिस्टम, बूंद-बूंद सिंचाई जैसी सिंचाई पद्धति का उपयोग किया जाता है। 
इस कृषि में उन्हीं फसलों को बोया जाता है, जो शुष्कता सहन कर सकती है। 
गूहँ, जौ, ज्वार, बाजरा, चना, कपास आदि शुष्क कृषि की फसलें है। 
भारत में इस प्रकार की कृषि पश्चिमी उत्तर प्रदेश अरावली के पश्चिम में प. राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश आदि राज्यों के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है। 
भारत में शुष्क कृषि अनुसंधान कार्यालय राँची में स्थापित किया गया है। 
यह भारत के शुष्क क्षेत्रों की जलवायु, प्राकृतिक दशा तथा बीजों का उचित चयन करके शुष्क क्षेत्रों हेतु कृषि की योजना बनाता है। 

5. गहन कृषि

इसके अन्तर्गत कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन का उद्देश्य रहता है जिसका प्रमुख कारण सघन आबादी एवं कृषि भूमि की कमी होना है। 
इस कृषि की विशेषताएँ निम्नलिखित है
(1) गहन कृषि क्षेत्रों में जनसंख्या के अनुपात में भूमि कम होती है।
(2) प्रति हेक्टेयर भूमि में खेतिहर श्रमिकों की संख्या अधिक होती है।
(3) वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाई जाती है। 
(4) इसमें फसल चक्रण को अपनाया जाता है।
(5) भूमि पर जनसंख्या का भार अधिक होने से सीमित भूमि से अधिक पैदावार की जाती है।
(6) गहन कृषि में पूँजी निवेश व यांत्रिक उपयोग की अपेक्षा मानवीय श्रम की प्रधानता होती है।
उत्तर भारत के अधिकाँश भागों में गहन कृषि ही की जाती है।

6. विस्तीर्ण कृषि

विस्तीर्ण कृषि उन देशों में की जाती है जहाँ जनसंख्या के अनुपात में भूमि अधिक होती है। 
इसीलिए खेतों का आकार बड़ा होता है जहाँ कृषि कार्य करने के लिए बड़ी मशीनों एवं यांत्रिक उपकरणों की आवश्यकता होती है। 
अतः कृषि के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है, उपरोक्त विशेषताओं वाली कृषि को विस्तीर्ण कृषि कहते हैं।
भारत में जनसंख्या की अपेक्षा भूमि कम है तथा पारिवारिक बँटवारे में भूमि का निरन्तर विभाजन एवं उपविभाजन होते रहने से खेतों का आकार छोटा होता गया और गहन खेती की जाती है। 
इन छोटे व बिखरे खेतों में लागत अधिक एवं उत्पादन कम होता है, इससे निपटने के लिए चकबन्दी योजना आरम्भ की गई जिसके अन्तर्गत साढ़े चार से पांच करोड़ हेक्टयर भूमि पर चकबन्दी की जा चुकी है।
पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में यह कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है। 
इन राज्यों के अधिकाँश भागों में यांत्रिक आधार पर विस्तीर्ण कृषि की जा रही है व अन्य राज्यों में भी कार्य प्रगति पर है जैसे राजस्थान का राजस्थान नहर का सिंचित क्षेत्र विस्तीर्ण कृषि के नवीन क्षेत्रों में हैं। 

7. उद्यान कृषि

व्यापारिक कृषि में उद्यान कृषि एक ऐसी सघन कृषि है, जिसमें बहुत उच्च स्तर का विशेषीकरण होता है, और जो अधिकतर छोटे पैमाने पर की जाती है। 
डेरी उद्योग के समान, उद्यान कृषि भी संसार के नगरीय बाजारों के द्वारा शाक-सब्जियों और फलों की माँग के कारण विकसित हुई है।
इसमें भूमि के छोटे से क्षेत्रफल में ही भोजन की बहुत बड़ी मात्रा उत्पन्न कर ली जाती है।

भारत में प्रमुख बागवानी फसलें : 2013-14 के अनुसार - भारत में सबसे अधिक फलों का उत्पादन तमिलनाडू, मसाले उत्पादन में गुजरात प्रथम, फलों के उत्पादन में महाराष्ट्र, सब्जियों के उत्पादन में पश्चिम बंगाल तथा आलू के उत्पादन में उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान रखता है। 
वर्ष 2004-05 से 2014-15 के बीच बागवानी फसलों की उत्पादकता में लगभग 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 
2004-05 में बागवानी फसलों का उत्पादन 167 मिलियन टन था जो 2014-15 में बढ़कर 283 मिलिटन टन हो गया। 
रासायनिक कृषि के दुष्परिणामों की जानकारी प्राप्त हुई है तब से वह अपने स्वास्थ्य तथा पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में जागरूकता आयी और विश्व पुनः जैविक कृषि अर्थात परम्परागत कृषि की और लौटने लगा। 
आज विश्व में लगभग 3.7 करोड़ हेक्टयर भूमि पर जैविक कृषि की जा रही है जो विश्व की कुल कृषि भूमि का 0.9 प्रतिशत है।

भारत में जैविक कृषि

भारत में लगभग 7.23 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर जैविक खेती की जा रही है। 
महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, पंजाब, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, झारखण्ड, बिहार, राजस्थान आदि के किसान जैविक खेती अपनाने में आगे आ रहे हैं।
सिक्किम देश का पहला पूर्ण जैविक खेती करने वाला राज्य : 18 जनवरी, 2016 को गंगटोंक (सिक्कीम) में आयोजित 'टिकाऊ कृषि सम्मेलन' में सिक्किम को पूर्णतया जैविक खेती करने वाला देश का पहला राज्य घोषित किया। 
सिक्किम में जैविक कृषि की खेती वर्ष 2003 में शुरू की गई थी। 
पर्यावरण सुरक्षा के लिए सिक्किम में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को पूर्णतः निषिद्ध कर दिया गया है। 
सिक्किम ने अपनी लगभग 75000 हेक्टेयर भूमि को टिकाऊ कृषि के लिए जैविक भूमि में परिवर्तित कर दिया है। इन्हीं सब उपाय के कारण सिक्किम देश का सबसे स्वच्छ राज्य के रूप में भी 2016 के अन्तर्गत चुना गया है। 

कृषि फसलें

भारत की फसलों को जलवायु के अनुसार तीन भागों में विभाजित किया गया है। 

1. खरीफ

ये फसलें मानसून आगमन से पूर्व जून- जुलाई से सितम्बर-अक्टूबर के मध्य वर्षा काल में उत्पादित फसलों को खरीफ के नाम से पहचाना जाता है। 
चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, जूट, मूंगफली, तिल, गन्ना, उड़द, मूंग, मोठ आदि फसलें सम्मिलित की जाती है। 

2. रबी 

शीतकाल में अक्टूबर-नवम्बर से लेकर मार्च- अप्रेल के मध्य होने वाली फसलों को रबी की फसल कहते हैं जिनमें सिंचाई की आवश्यकता रहती है। 
गेहूँ, जौ, चना, सरसों, मटर, अरहर, मसूद आदि। 

3. जायद

रबी व खरीफ के अतिरिक्त मध्यवर्ती समय में बोई जाने वाली फसल जिसमें सब्जियाँ, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, चरी (ज्वार) आदि फसलें।

उपयोग के आधार पर विभाजन 
1. खाघान्न फसलें : चावल, गेहूँ, बाजरा, ज्वार, मक्का, दालें । 
2. बागानी फसलें : चाय, कहवा, तम्बाकू 
3. नगदी फसलें : गन्ना, तिलहन, सोयाबीन, राई, सरसों 
4. रेशेदार : कपास एवं जूट

मुख्य कृषि फसलों का वर्णन इस प्रकार है -

1. गेहूँ

इसके लिए समशीतोष्ण सर्वोत्तम जलवायु है। 
मोहनजोदड़ो की खुदाई में जो गेहूँ दाने मिले हैं इससे इतिहासकारों का मत है कि भारत ही गेहूँ का सम्भवतः आदि स्थान रहा है। 
भारत की यह दूसरी वृहत खाद्य फसल है जो उगाई व भोजन में काम आती है। 
विश्व उत्पादन का 11.7 प्रतिशत भारत से प्राप्त होता है। 
खाद्यान्न उत्पादन में लगी कुल भूमि का 23 प्रतिशत भाग पर गेहूँ उगाया जाता है। 
गेहूँ शीतोष्ण कटिबन्धीय उपज है जिसका उत्पादन भारत में अक्टूबर-नवम्बर से मार्च के मध्य किया जाता है। 
बोते समय 10 प्रतिशत बढ़ते समय 15°C तथा पकते व काटते समय 20°C से 28°C तापमान की आवश्यकता रहती है साथ ही 100 दिन पाला रहित होना आवश्यक है।
गेहूँ के लिए आदर्श वर्षा 50 से 75 सेमी. है लेकिन कम होने पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। 
मावट इसके लिए श्रेष्ठ होती है।
गेहूँ के लिए हल्की, दोमट, बलुई, काली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
समतल धरातल होना चाहिए, जहाँ कृषि यंत्रों का उपयोग आसानी से किया जा सके और जल निकास हो सके।
उत्पादन बढ़ाने के लिए कम्पोस्ट, जैविक, गोबर के साथ रासायनिक उर्वरकों का उपयोग भी तेजी से बढ़ा है। 
भारत में गेहूँ उत्पादन की दृष्टि से सतलज, यमुना एवं ऊपरी गंगा का मैदानी भाग सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । 
पर्याप्त जल, उपजाऊ एवं समतल भूमि के कारण यह क्षेत्र देश का 68 प्रतिशत गेहूँ का उत्पादन करता है। 
1970-71 में औसत ऊपज 1307 किग्रा. थी वहीं 2013-14 में भारतीय औसत 3145 किग्रा प्रति हेक्टेयर था। 
सन् 2014-15 में देश के 31 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर गेहूँ बाया गया जिसका उत्पादन 88.9 लाख मिलियन टन रहा, साथ ही प्रति हेक्टेयर उत्पादन 2872 किग्रा रहा।

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प्रमुख उत्पादक राज्य 

उत्तर प्रदेश  

यह भारत का आदर्श गेहूँ उत्पादक राज्य है। 
यहाँ केवल उत्तरी पर्वतीय एवं दक्षिणी पठारी क्षेत्रों को छोड़कर सर्वत्र गेहूँ की कृषि की जाती है। 
राज्य में गंगा-यमुना, गंगा-घाघरा दोआब गेहूँ की कृषि के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। 
जहाँ राज्य का 75 प्रतिशत गेहूँ पैदा होता है।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014-15 में 25.2 मिलियन टन गेहूँ का रिकार्ड उत्पादन हुआ जो देश का 28.4 प्रतिशत है।

पंजाब

हरित क्रान्ति के प्रभाव से पंजाब में गेहूँ की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 
यहाँ कुल कृषि भूमि के 30 प्रतिशत भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है। 
2014-15 में राज्य 15.8 मिलियन टन का उत्पादन हुआ जो देश के गेहूँ उत्पादन का 17.7 प्रतिशत उत्पादन कर दूसरा सबसे बड़ा उत्पादन राज्य है। 
मुख्य उत्पादक जिले- लुधियाना, जालन्धर, अमृतसर, कपूरथला, फिरोजपुर, भटिण्डा, पटियाला तथा संगरूर
है। 

हरियाणा

क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटा लेकिन सिंचाई सुविधाओं के कारण 13.5 प्रतिशत गेहूँ उत्पादन कर बड़ा उत्पादक राज्य बन गया है। 
यहाँ रोहतक, हिसार, जिंद, कुरूक्षेत्र, सिरसा, फतेहाबाद, अम्बाला, गुड़गाँव, फरीदाबाद जिलों में देश का 8 प्रतिशत गेहूँ उत्पादन क्षेत्र स्थित है।

मध्यप्रदेश

मैदानी भागों और मालवा की काली मिट्टी क्षेत्रों में सिंचाई द्वारा गेहूँ उत्पादन किया जाता है। 
वर्ष 2014-15 में राज्य में 14.2 मिलियन टन गेहूँ का उत्पादन हुआ जो देश का 15.9 प्रतिशत था। 
मध्य प्रदेश देश का तीसरा बड़ा उत्पादन राज्य है। प्रमुख उत्पादक जिले गुना भिण्ड, ग्वालीयर, उज्जैन, सागर, इन्दौर, जबलपुर आदि। पिछले कुछ वर्षों से गेहूँ उत्पादन में वृद्धि हुई है। जिले हैं।

अन्य गेहूँ उत्पादक राज्य : पश्चिम बंगाल (मुर्शिदाबाद, नादिया, वीरभूमि, दीनाजपुर), हिमाचल प्रदेश (कांगड़ा मण्डी, शिमला), कर्नाटक (बिजापुर, धारवाड़, बेलगाम), महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु तथा आन्ध्र प्रदेश।

2. चावल

चावल भारत के प्रमुख खाद्यान्नों में से एक है। 
यह देश के तीन चौथाई मनुष्यों का भोज्य पदार्थ है।
विश्व उत्पादन का लगभग 19 प्रतिशत चावल भारत से प्राप्त होता है। 
वर्ष 2014-15 में देश में खाद्यान्नों के अन्तर्गत क्षेत्र का 35.9 प्रतिशत भाग पर चावल बोया गया है।
रूसी विद्धान वेविलोव के अनुसार चावल का मूल स्थान भारत है, जहाँ से इसका प्रसार पूर्व की और चीन तक 3000 ई.पू. तक होचुका था। 
मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा व समकालिक सभ्यताओं में भी चावल के अवशेष मिले हैं। 
वैदिक काल में चावल धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यों में उपयोग लिया जाता है। 
चावल उष्णकटिबन्धीय पौधा है। 
यह 19°C से कम तापमान में पैदा नहीं हो सकता । 
बोते समय 20°C तापमान, पकने के समय 27°C की आवश्यकता होती है।
खेतों में 75 दिनों तक पानी भरा रहना चाहिए। 
100 सेमी से 200 सेमी वार्षिक वर्षा आवश्यक है। 
चावल कृषि हेतु जलोढ़ चिकनी मिट्टी सर्वोत्तम है जो नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में तथा तटवर्ती भागों में मिलती है।
चावल की खेती के लिए हरी एवं गोबर खाद, हड्डियों की खाद, अमोनियम सल्फेट व नाइट्रेट खाद की आवश्यकता होती है। 
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प्रमुख उत्पादक राज्य 

पश्चिम बंगाल

देश का 14 प्रतिशत चावल क्षेत्र है। वर्ष 2014-15 के आधार पर 14.32% चावल उत्पादन कर प्रथम स्थान पर है। 
कुल उत्पादन का 75 प्रतिशत अमन फसल से प्राप्त होता है। 
मुख्य उत्पादक जिले कूच बिहार जलपाई गुड़ी, बाँकुडा मिदनापुर, दार्जलिंग है।

पंजाब 

पंजाब में प्रमुख उत्पादक जिले यहाँ होशियारपुर, गुरदासपुर, जालन्धर, अमृतसर, रूपनगर, लुधियाना, कपूरथला आदि जिले है।
राज्य 2014-15 के अनुसार प्रति हेक्टेयर 3952 किग्रा उत्पादन कर प्रथम स्थान है।

बिहार

राज्य में चावल की वर्ष में 2 फसलें पैदा की जाती है। 
कुल कृषि भूमि के 40 प्रतिशत भाग पर चावल उगाया जाता है। 
प्रमुख उत्पादक जिलों में सारन, चम्पारन, गया, दरभंगा, मुंगेर, पूर्णिया आदि जिलों में धान पैदा किया जाता है।

तमिलनाडु

इस राज्य की देश के कुल चावल उत्पादन में 6-10 प्रतिशत तक भागीदारी है। 
यहाँ काबेरी नदी के डेल्टा में स्थित अकेला तंजावूर जिला तमिलनाडु का 25 प्रतिशत चावल पैदा करता है।

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ का मैदानी भाग चावल कृषि के लिए महत्वपूर्ण है और इसे प्रायः चावल का कटोरा कहा जाता है। 
बिलासपुर, बस्तर, सरगुजा, रायगढ़, दंतेवाडा, नारायणपुर आदि प्रमुख उत्पादन जिले हैं।

मध्यप्रदेश

राज्य की कुल कृषि भूमि के 14 प्रतिशत भाग पर चावल उगाया जाता है। 
यहाँ नर्मदा तथा तापी नदी की घाटियों में चावल की कृषि होती है। 
यहाँ देश का सबसे कम प्रति हेक्टेयर 1474 किग्रा औसत उत्पादन होता है।

ओडिसा

राज्य की कुल कृषि भूमि के 58 प्रतिशत भाग पर चावल उत्पादन किया जाता है।
बालासार, कटक, पुरी, मयूरभंज, कालाहाँडी आदि प्रमुख उत्पादन जिले हैं। 
भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान कटक में है।

राजस्थान

डूंगरपुर, बूंदी, बाँसवाड़ा, हनुमानगढ़, गंगानगर जिलों में चावल की फसल पैदा होती है।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम, केरल, मेघालय, गोवा, मणिपुर, नागालैण्ड, मिजोरम, अन्य चावल उत्पादक राज्य है।

3. कपास

कपास का जन्म स्थान भारत देश है। 
भारत से विश्व की 12 प्रतिशत कपास प्राप्त होती है।
कपास एक झाड़ीनुमा पौधा है जो 1. 5 से 2 मीटर तक बढ़ता है, जिसके उपर अनेक डोडियाँ लगती है। 
कपास उपोष्ण तथा उष्ण कटिबन्धीय पौधा है। 21 से 25 से.ग्रे. तापमान आदर्श रहता है किन्तु 40 से.ग्रे. तक भी पैदा किया जा सकता है। 
200 दिन पाला रहित आकाश साफ आवश्यक है।
कपास हेतु 50 से 100 सेमी. वर्षा पर्याप्त है लेकिन थोड़े-थोड़े अन्तराल पर आवश्यक वर्षा कम होने पर सिंचाई द्वारा भी की जाती है।
कपास यथा संभव सभी मिट्टियों में पैदा किया जाता है। 
कच्छारी, उ. भारत एवं दक्षिण पठारी प्रदेश में काली मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त है इसे रेगुर मिट्टी भी कहते हैं।
कपास की खेती के लिए अच्छे जल प्रवाह युक्त धरातल की आवश्यकता होती है। खेतों में पानी भरा रहना फसल के लिए हानिकारक होता है।
देश की कपास के उत्पादन का 60 प्रतिशत चार राज्य, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना करते हैं।

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प्रमुख उत्पादक राज्य 

गुजरात

गुजरात भारत के कुल उत्पादन का 34.09 प्रतिशत कपास उत्पादित कर प्रथम स्थान पर है। 
यहाँ की जलवायु एवं मिट्टी कपास के लिए आदर्श है। 
यहाँ की 70 प्रतिशत कपास बड़ोदरा, अहमदाबाद, सूरत, भड़ौच, साबरमती, पंचमहल, सुरेन्द्र नगर, जिलों में उत्पादित होती है।

महाराष्ट्र

यह देश की 20.45 प्रतिशत कपास उत्पादन कर दूसरे स्थान पर है। 
यहाँ अब लम्बे रेशे वाली कपास उगाई जाती है। 
राज्य की लावायुक्त काली मिट्टी कपास की कृषि हेतु बहुत उपयुक्त है। नागपुर, आकोला, अमरावती, वर्धा, नांदेड, जलगाँव, बुलढ़ाना आदि प्रमुख उत्पादक जिले हैं। प्रति हेक्टयर उत्पादन सबसे कम है। 

आन्ध्र प्रदेश

आन्ध्र प्रदेश तीसरा बड़ा उत्पादक है। 
यह देश का 13.92 प्रतिशत उत्पादन करता है। 
राज्य में कपास की खेती कृष्णा नदी की घाटी में की जाती है।
रन्तूर, अवन्तपुर, कर्नूल, कृष्णा प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

राजस्थान

राज्य में सिंचाई की सहायता से ही कपास की कृषि की जाती है। 
देश का 6.6 प्रतिशत कपास उत्पादन राज्य में होता है। 
अकेला हनुमानगढ़ जिला राज्य का 30 प्रतिशत कपास का उत्पादन करता है। 
अन्य जिलों में श्रीगंगानगर, भीलवाड़ा, अजमेर, बूंदी, टोंक, पाली, कोटा, झालावाड़ आदि है। 

तमिलनाडु

यह राज्य पाँच प्रतिशत उत्पादन करता है। 
तमिलनाडु लम्बे रेशे एवं उच्च गुणवत्ता वाली कपास के लिए प्रसिद्ध है। 
मदुरई, कोयम्बटूर, तिरूचिरापल्ली, सलेम, तंजावूर प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

कर्नाटक

राज्य के कपास उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्र हैं। 
प्रथम क्षेत्र काली मिट्टी का है, जिसे सलहट्टी कहते हैं। 
इसके अन्तर्गत बेलारी, शिमोगा, चिकमंगलूर, चितल दुर्ग आते हैं। 
द्वितीय दक्षिणी क्षेत्र लाल मिट्टी का है, इसे दौड़हट्टी कहते हैं। 
जिससे रायचूर एवं धारवाड़ जिले राज्य की 50 प्रतिशत से अधिक कपास का उत्पादन करते हैं।

अन्य उत्पादक क्षेत्र

मध्यप्रदेश, अनुकूल दशायें नर्मदा, ताप्ती की घाटी एवं मालवा के पठार राज्य का 80 प्रतिशत उत्पादन किया जाता है। 
कुछ मात्रा में केरल, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, असम, बिहार में भी कपास का उत्पादन किया जाता है। 

4. गन्ना

भारत को गन्ने की जन्म स्थली होने का गौरव प्राप्त है। 
पूर्वी - भारत में गन्ने की खेती का वृतान्त वैदिक साहित्य में भी उपलब्ध है। 
चीन, जावा एवं अन्य देशों में गन्ने की खेती का विस्तार भारत से ही हुआ है।
भारत में गन्ना मुख्य व्यापारिक फसल है। 
विश्व के गन्ना उत्पादक क्षेत्र का 35 प्रतिशत क्षेत्र भारत में पाया जाता है। 
गन्ना उत्पादन में भी भारत प्रथम-द्वितीय स्थान पर होता रहता है। 
ब्राजील एवं क्यूबा भी भारत के लगभग बराबर ही गन्ना उत्पादन करते हैं।
सन् 1850 तक कुल शक्कर का 86 प्रतिशत तक गन्ने से प्राप्त होता था लेकिन अब चुकन्दर की शक्कर से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है अब यह 55 से 60 प्रतिशत तक रह गई है।
गन्ना, अयन वृत्तीय पौधा है, इसकी खेती 8° उत्तरी अक्षांश से 32° उत्तरी अक्षांश तक की जाती है।
20° से 30°C तापमान आवश्यक है। 
पाला गन्ने के लिए हानिकारक रहता है। 
निरन्तर समान तापमान रहने पर गन्ने की मिठास की मात्रा बढ़ जाती है।
वर्षा : 100 से 200 सेमी वर्षा फसल के लिए उपयुक्त होती है। 
सूखा या वर्षा कम होने पर सिंचाई द्वारा गन्ना उत्पादन किया जा सकता है।
गन्ना उत्पादन हेतु नाइट्रोजन एवं जीवाँश युक्त उपजाऊ मिट्टी आवश्यक है। 
उपजाऊ दोमट गहरी चिकनी एवं लावायुक्त काली मिट्टी फसल के लिए उपयुक्त है।
गन्ने की अच्छी फसल हेतु गोबर, कपोस्ट, हरी खाद, जैविक एवं रासायनिक खाद की आवश्यकता होती है।
भारत में गन्ना उत्पादक क्षेत्र में उत्तरी भारत का स्थान प्रमुख रहा है ।

- भारत में उत्पादित गन्ने का 40 प्रतिशत गुड़ एवं 50 प्रतिशत चीनी बनाने में प्रयुक्त होता है। 
देश में उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र, कर्नाटक मिलकर देश के कुल उत्पादन का 73 प्रतिशत गन्ना पैदा करते हैं।


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प्रमुख उत्पादक राज्य

उत्तर प्रदेश

वर्ष 2013-14 के अनुसार उत्तर प्रदेश देश का 38.56 प्रतिशत गन्ना उत्पादन कर प्रथम स्थान पर रहा, साथ ही कृषि क्षेत्रफल की दृष्टि से भी प्रथम रहा है। 
यहाँ दो प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है -
(अ) तराई क्षेत्र : रामपुर से बरेली, पीलीभीत, सीतापुर, खीरी, मुरादाबाद, फैजाबाद, आजमगढ़, जौनपुर, गोरखपुर होते हुए बिहार के चम्पारन जिलों तक विस्तृत है। 
(ब) दोआब क्षेत्र : गंगा-यमुना का दो आब क्षेत्र जो मेरठ से प्रारम्भ होकर इलाहाबाद तक विस्तृत है। 
मेरठ का गन्ना उत्तम कोटि का है जिसको यहाँ गुड़ बनाने में उपयोग किया जाता है।

महाराष्ट्र

दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। 
यहाँ गोदावरी नदी की उपरी घाटी गन्ने की कृषि के लिए प्रसिद्ध है। 
अधिकाँश गन्ने से शक्कर बनाई जाती है। 
राज्य शक्कर के उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। 
यहाँ उच्च कोटि का गन्ना पैदा किया जाता है। 
अहमदनगर, नासिक, पुणे, शोलापुर, रत्नागिरी प्रमुख गन्न उत्पादक जिले हैं।

तमिलनाडु
गन्ने का तीसरा बड़ा उत्पादक राज्य है। 
प्रति हेक्टेयर उत्पादन (113.41 टन) में देश के अधिकतम उत्पादन करने वाले राज्यों में से है। 
भारत के कुल उत्पादन का 10.68 प्रतिशत गन्ना उत्पादित होता है। 
कोयम्बटुर में राष्ट्रीय गन्ना अनुसंधान संस्थान स्थित है।
 राज्य में समुद्रतटीय जलवायु के कारण गन्ने में मिठास अधिक होती है। 

कर्नाटक

यहाँ गन्ने की कृषि नदी घाटियों में होती है।
तटीय क्षेत्र में उपजाऊ मिट्टी अनुकूल समुद्री जलवायु से उत्पादकता अधिक और निरन्तर क्षेत्र में वृद्धि हो रही है। 
देश का 10 से 12 प्रतिशत गन्ने का उत्पादन होता है। 
बेलगाँव, बेलारी, माण्डवा, कोलार, मैसूर, तुमकूर, रायचूर प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

आन्ध्र प्रदेश

राज्य में कृष्णा-गोदावरी नदियों के डेल्टाई क्षेत्र में स्थित है। 
यहाँ देश का 4.67 प्रतिशत गन्ना पैदा होता है। 
मुख्य उत्पादक जिले पूर्वी एवं पश्चिमी गोदावरी, श्रीकाकुलम, विशाखापट्टनम तथा चितूर है।

गुजरात

यहां देश का 3.17 प्रतिशत गन्ना उत्पादन होता है। 
सूरत, भावनगर, जामनगर, राजकोट तथा जूनागढ़ प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

पंजाब

भारत वर्ष का 2.21 प्रतिशत गन्ना पैदा किया जाता है। 
अमृतसर, जालंधर, फिरोजपुर, गुरदासपुर प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

हरियाणा

देश का 2.04 प्रतिशत गन्ना पैदा किया जाता है। 
पंजाब की तरह यहाँ भी उपजाऊ मृदा एवं सिंचाई साधनों के कारण गन्ना क्षेत्र एवं उत्पादन व प्रति हेक्टर में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
राजस्थान : बूंदी, उदयपुर, भीलवाड़ा, श्रीगंगानगर, चितौडगढ़, कोटा जिले प्रमुख है।

अन्य उत्पादक क्षेत्र

बिहार के उत्पादक क्षेत्र तराई के समीपवर्ती चम्पारन, गया, दरभंगा, सारन प्रमुख उत्पादक जिले हैं। 
उड़ीसा में– पुरी, कटक, अम्बलपुर तथा मध्य प्रदेश में- मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी आदि है। 
गन्ना उत्पादन की समस्याएँ 
(1) गन्ने के लिए आदर्श दशाएँ भारत के दक्षिण में सागर तटीय क्षेत्रों में मिलती है। 
किन्तु अब भी इसका उत्पादन उत्तर भारत में होता है जहाँ शुष्क ऋतु लम्बी होने से गन्ने में रस की मात्रा कम होती है।
(2) उन्नत तकनीक का यथोचित उपयोग नहीं हो पाना ।
(3) किसानों को समय पर फसल मूल्य का भुगतान नहीं होना।
(4) मौसम की मार।
(5) गन्ने की फसल का उचित मूल्य निर्धारण न होना। 

5. चाय

यह उष्ण कटिबन्धीय पौधा है। 
इसके लिए 25 से 30°C तापमान आदर्श रहता है। 
चाय की झाड़ी एवं पौधों की वृद्धि के लिए छाया अनुकूल व शुष्क हवा प्रतिकूल रहती है।

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200 से 250 सेमी. वर्षा आवश्यक है।
वर्ष में बार-बार वर्षा की बोछारें उपयुक्त रहती हैं। 
प्रातःकालीन धूप फसल के विकास के लिए अच्छी रहती हैं।
चाय के लिए मिट्टी गहरी और गंधक युक्त होनी चाहिए । 
वनों को साफ करके तैयार की गई भूमि अच्छी मानी जाती हैं।

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