माही परियोजना - Mahi Pariyojana

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माही परियोजना टॉपिक आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे- BankSSCRailwayRRBUPSC आदि में सहायक होगा।

आप Mahi Pariyojana in Hindi का PDF भी डाउनलोड कर सकते है।

Mahi Pariyojana - माही परियोजना

नदियों की घाटियो पर बडे-बडे बाँध बनाकर ऊर्जा, सिंचाई, पर्यटन स्थलों की सुविधाएं प्राप्त की जातीं हैं। इसीलिए इन्हें बहूद्देशीय नदी घाटी परियोजना कहते हैं। नदी घाटी योजना का प्राथमिक उद्देश्य होता है किसी नदीघाटी के अंतर्गत जल और थल का मानवहितार्थ पूर्ण उपयोग। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को ‘आधुनिक भारत का मंदिर’ कहा था
माही परियोजना या 'जमनालाल बजाज सागर परियोजना'
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विवरण        माही परियोजना या 'जमनालाल बजाज सागर परियोजना' भारत की अंतर-राज्यीय परियोजना है। इस परियोजना की नींव तत्कालीन वित्तमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा रखी गई थी और इसका नाम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज के नाम पर रखा गया था।


स्थान           गुजरात राज्य में गुजरात और राजस्थान की सीमा पर

उद्देश्य दामोदर नदी पर बाढ़ का नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत-उत्पादन, पारेषण व वितरण, पर्यावरण संरक्षण तथा वनीकरण

अन्य जानकारी माही  परियोजना माही नदी से जुड़ी हुई है। माही नदी राजस्थान के थार में सरदारपुरा गाँव से निकलती है। माही नदी मध्य प्रदेश, राजस्थान व गुजरात से होकर बहती है।

माही परियोजना - Mahi Pariyojana

यह राजस्थान एवं गुजरात की संयुक्त परियोजना है। इसका नाम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज के नाम पर रखा गया था। 
मध्यप्रदेश के धार जिले में विंध्यांचल श्रेणी के उत्तरी ढाल से निकल कर माही नदी लगभग 169 किलोमीटर मध्यप्रदेश बहने के पश्चात बांसवाड़ा के निकट राजस्थान में प्रवेश करती है। 
तत्पश्चात यह नदी राजस्थान में 171 किलोमीटर बहन के पश्चात गुजरात राज्य में बहती हुई खम्भात की खाड़ी में गिरती है। इस नदी का अपवाह क्षेत्र अर्द्ध शुष्क एवं पथरीला है। 
यहाँ सिंचाई हेतु कुँओं की खुदाई करना बहुत कठिन कार्य है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए यहां इस परियोजना को विकसित किया गया। 
यह परियोजना राजस्थान एवं गुजरात  की संयुक्त परियोजना है,जिसके निर्माण हेतु दोनों राज्यों में 1966 में एक समझौता हुआ था। 
सन 1971 में केन्द्रीय जल आयोग द्वारा परियोजना को स्वीकृति प्रदान की गई तथा इसका निर्माण 1972 में प्रारंभ हुआ था, जिसे नवम्बर, 1983 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया।
1966 में हुए समझौते के अनुसार राजस्थान का हिस्सा 45 प्रतिशत व गुजरात का हिस्सा 55 प्रतिशत है। बांसवाड़ा जिला जो पिछड़ा, आदिवासी ऊबड़-खाबड़ किन्तु नदी घाटियों से परिपूर्ण था, में माही बजाज सागर परियोजना की क्रियान्विति के कारण एक नए युग का सूत्रपात हुआ।
परिणामस्वरूप यह परियोजना विभिन्न क्षेत्रों जैसे - कृषि उत्पादन में वृद्धि, खनन व्यवसाय का विकास, उद्योगों की स्थापना, वृक्षारोपण, मृदा संरक्षण, चारागाह का विकास आदि  उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक सिद्ध हुई।
माही नदी पर बोरखेड़ा गांव के निकट बाँसवाड़ा से 16 किलोमीटर की दूरी पर मुख्य बांध बनाया गया है। बांध की लम्बाई 3109 मीटर तथा फाउंडेशन लेवल से इसकी ऊँचाई 74.5 मीटर है, जिसका 55 प्रतिशत निर्माण खर्च गुजरात सरकार ने वहां किया है, तथा शेष 45 प्रतिशत राजस्थान सरकार द्वारा वहां किया गया है। 
इसका कुल जल संग्रहण क्षेत्र लगभग 6,149 वर्ग किलोमीटर (2,374 sq mi) है, जिसमें से मध्यप्रदेश में 4350 वर्ग किमी तथा राजस्थान में 1809 वर्ग कि.मी. है। 
इस बांध में चार दरवाजे बाढ़ के अधिक पानी को निकालने के लिए लगाए गए हैं। 
इस बाँध की कुल जल संग्रहण क्षमता 2070 मिलीयन घनमीटर है। 
बांसवाड़ा के समीप कागदी पिकअप वियर से सिंचाई के लिए दो मुख्य नहरें - दाईं व बाईं नहर निकाली गई है, जिनकी लम्बाई क्रमशः 71.22 किलोमीटर एवं 36.12 किलोमीटर है। 
इसकी वितरिकाओं की कुल लंबाई लगभग 854 किलोमीटर है। 
इस योजना के माध्यम से राजस्थान एवं गुजरात में आठ-आठ लाख हैक्टेयर भूमि पर सिंचाई सुविधा प्राप्त करते हैं। 
इस योजना के तहत दो बिजली स्टेशन अर्थात माही प्रथम और माही II का निर्माण किया गया है। माही प्रथम पावर हाउस माही बांध पर हैगपुरा गांव के समीप स्थित है, जिसमें 25 मेगावाट की 2 इकाइयां हैं। 
माही द्वितीय पावर हाउस बांध स्थल से 45 किमी की दूरी लिलवानी पर स्थित है, जिसमें 45 मेगावाट की 2 इकाइयां हैं। 
माही द्वितीय पावर हाउस माही प्रथम पावर हाउस के अपस्ट्रीम के पश्च पानी का उपयोग करता है। इस परियोजना में गुजरात के पंच महल जिले में माही नदी पर कड़ाना बांध का निर्माण किया गया है। 
इस परियोजना से डूंगरपुर व बांसवाड़ा जिलों की कुछ तहसीलों को जलापूर्ति होती है।

महत्वपर्ण तथ्य

डीवीसी भारत सरकार द्वारा शुरू की जानेवाली प्रथम बहूद्देशीय नदी घाटी परियोजना।
कोयला, जल तथा तरल ईंधन तीनों स्त्रोतों से विद्युत उत्पादन करनेवाला भारत सरकार का प्रथम संगठन।
मैथन में भारत का प्रथम भूमिगत पनविद्युत केन्द्र।
विगत शताब्दी के पचावें दशक में बोकारो ंकएंक ताविके राष्ट्र का बृहत् तापीय विद्युत सयंत्र।
बीटीपीएस ंकएंक बॉयलर ईंधन फर्नेंस में अनटैप्ड निम्न स्तर कोयला जलाने में प्रथम।
चंद्रपुरा ताविके में उच्च ताप प्राचलों का प्रयोग करते हुए भारत की प्रथम री-हिट इकाइयाँ।
मेजिया इकाई जीरो कोल रिजेक्ट हेतु सेवा में ट्यूब मिलों सहित पूर्वी भारत में अपने प्रकार की प्रथम।

दामोदर घाटी परियोजना - Damodar Ghati Pariyojana
                                                                                
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