Bharat Ka Bhugol, Notes, Map, PDF - भारत का भूगोल

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भारत का भूगोल टॉपिक आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे- BankSSCRailwayRRBUPSC आदि में सहायक होगा। 
आप Bharat Ka Bhugol Notes in Hindi का PDF भी डाउनलोड कर सकते है।

भारत का भूगोल - Geography Notes of India in Hindi

भारत का समान्य परिचय मुख्य पृष्ठ

भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित एशिया महादेश का एक विशाल देश है। 
इसका अक्षांशीय विस्तार 8°4' उत्तरी अक्षांश से 37°6' उत्तर अक्षांश तक तथा शांतीय विस्तार 68°7' पूर्वी देशांतर से 97025 पूर्वी देशांतर तक है। 
इस प्रकार इसका अक्षाशीय तथा देशांतरीय विस्तार लगभग 30° है। 
भारत की मुख्य भूमि का दक्षिणतम अक्षांश 84 है जबकि भारत का सबसे दक्षिणतम बिन्दु इंदिरा प्वाइंट का अक्षांश 6°4' है।
भारत की उत्तर से दक्षिण लम्बाई 3214 किमी और पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 2933 किमी है।
इसकी स्थलीय सीमा की लम्बाई 15200 किमी तथा समुद्र तट की लम्बाई 7517 किमी है।
कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है।
भारत की मुख्य भूमि का दक्षिणतम अक्षांश 84 है जबकि भारत का सबसे दक्षिणतम बिन्दु इंदिरा प्वाइंट का अक्षांश 6°4' है।
Bharat Ka Bhugol Notes

भारत की उत्तर से दक्षिण लम्बाई 3214 किमी और पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 2933 किमी है।
इसकी स्थलीय सीमा की लम्बाई 15200 किमी तथा समुद्र तट की लम्बाई 7517 किमी है।
कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है।
भारत की स्थलीय सीमा उत्तर-पश्चिमी में पाकिस्तान और अफगानिस्तान से लगती है, उत्तर में तिब्बत (अब चीन का हिस्सा) और चीन तथा नेपाल और भूटान से लगी हुई है और पूर्व मे बांग्लादेश तथा म्यांमार से।
बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह और अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप, भारत के द्वीपीय हिस्से हैं।
इस प्रकार भारत की समुद्री सीमा दक्षिण-पश्चिम में मालदीव दक्षिण में श्री लंका और सुदूर दक्षिण-पूर्व में थाइलैंड और इंडोनेशिया से लगती है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के साथ भारत की स्थलीय सीमा और समुद्री सीमा दोनों जुड़ी हैं।
कर्क रेखा भारत के बीचो-बीच 8 राज्यों से होकर गुजरती है। 
ये राज्य निम्न है- गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा (त्र.) एवं मिजोरम।
82°30' पूर्वी देशांतर को भारत का मानक याम्योत्तर या मीन टाइम लाइन माना गया है।
यह उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के निकट मिर्जापुर के नैनी से गुजरती है। 
इसी के कारण इलाहाबाद को 'शून्य मील केन्द्र' कहा जाता है।
किसी भी देश के मानक याम्योत्तर का चुनाव 7°30' देशांतर के गुणक के साथ साथ देश के मध्य से गुजरने की शर्तों पर किया जाता है। 
इसी आधार पर 82°30' याम्योत्तर को भारत का मानक याम्योत्तर चुना गया है। 
यह ग्रीनविच (लंदन) मीन read more....

भारत के भौतिक प्रदेश मुख्य पृष्ठ

भारत की भौगोलिक आकृतियों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -
(1) हिमालय पर्वत श्रृंखला
(2) उत्तरी मैदान
(3) प्रायद्वीपीय पठार
(4) भारतीय मरुस्थल
(5) तटीय मैदान
(6) द्वीप समूह

1. हिमालय पर्वत 
भारत की उत्तरी सीमा पर विस्तृत हिमालय भूगर्भीय रूप से युवा एवं बनावट के दृष्टिकोण से वलित पर्वत श्रृंखला है।
ये पर्वत श्रृंखलाएँ पश्चिम-पूर्व दिशा में सिंधु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक फैली हैं।
हिमालय विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है और एक अत्यधिक असम अवरोधों में से एक है।
ये 2,400 कि०मी० की लंबाई में फैले एक अर्द्धवृत्त का निर्माण करते हैं।
इसकी चौड़ाई कश्मीर में 400 कि॰मी॰ एवं अरुणाचल में 150 कि॰मी॰ है।
पश्चिमी भाग की अपेक्षा पूर्वी भाग की ऊँचाई में अधिक विविधता पाई जाती है।
अपने पूरे देशांतरीय विस्तार के साथ हिमालय को तीन भागों में बाँट सकते हैं।

2. उत्तर का विशाल मैदान
उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों- सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों से बना है।
यह मैदान जलोढ़ मृदा से बना है।
लाखों वर्षों में हिमालय के गिरिपाद में स्थित बहुत बड़े बेसिन (द्रोणी) में जलोढों का निक्षेप हुआ, जिससे इस उपजाऊ मैदान का निर्माण हुआ है।
इसका विस्तार 7 लाख वर्ग कि०मी० के क्षेत्र पर है।
यह मैदान लगभग 2,400 कि०मी० लंबा एवं 240 से 320 कि०मी० चौड़ा है।

3. प्रायद्वीपीय पठार 
प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है जो पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है।
यह गोंडवाना भूमि के टूटने एवं अपवाह के कारण बना था तथा यही कारण है कि यह प्राचीनतम भूभाग का एक हिस्सा है।
इस पठारी भाग में चौड़ी तथा छिछली घाटियाँ एवं गोलाकार पहाड़ियाँ हैं।
इस पठार के दो मुख्य भाग हैं- 'मध्य उच्चभूमि' तथा 'दक्कन का पठार'।
नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है उसे मध्य उच्चभूमि के नाम से जाना जाता है।
विंध्य शृंखला दक्षिण में मध्य उच्चभूमि तथा उत्तर-पश्चिम में अरावली से घिरी है।
पश्चिम में यह धीरे-धीरे राजस्थान के बलुई तथा पथरीले मरुस्थल read more....

भारत की जलवायु मुख्य पृष्ठ

मानसून का प्रथम अध्ययन अरबी भूगोलवेत्ता अलमसूदी के द्वारा किया गया, इसी कारण मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसिम शब्द से हुई है। मौसिम शब्द का अर्थ पवनों की दिशा का मौसम के अनुसार पलट जाना है। 
 
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार है- 
1. अक्षांश
भूमध्य रेखा से दूरी बढ़ने अर्थात् बढ़ते हुए अक्षांश के साथ तापमान में कमी आती है क्योंकि सूर्य की किरणों के तिरछी होने से सौर्यातप की मात्रा प्रभावित होती है। कर्क रेखा भारत के मध्य भाग से गुजरती है। इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबंध में तथा कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भाग उष्ण कटिबंध में पड़ता है, तो वहीं उष्ण कटिबंध में भूमध्य रेखा के अधिक निकट होने के कारण वर्ष भर ऊँचे तापमान और कम दैनिक व वार्षिक तापांतर पाए जाते हैं तथा शीतोष्ण कटिबंध में भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक व वार्षिक तापांतर के साथ विषम जलवायु पाई जाती है। अंत: हम कह सकते हैं कि भारत की जलवायु में उष्ण कटिबंधीय व उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ उपस्थित हैं ।

2. मानसूनी पवनें
मानसूनी पवनें भी भारतीय भू-भाग की जलवायु के निर्धारक तत्व हैं, तो वहीं ये मानसूनी पवनें ग्रीष्मकाल में दक्षिण-पश्चिम तथा शीतकाल में उत्तर-पूर्व दिशा में बहती हैं तथा ये मानसूनी पवनें देश में वर्षा की मात्रा, आर्दता एवं तापमान को प्रभावित करती हैं।

3. समुद्र तल से ऊँचाई

ऊँचाई के साथ तापमान घटता है, वहीं सामान्यतः प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान कम हो जाता है। विरल वायु के कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की तुलना में अधिक ठंडे होती हैं तथा एक ही अक्षांश पर स्थित होते हुए भी ऊँचाई की भिन्नता के कारण ग्रीष्मकालीन औसत तापमान में विभिन्न स्थानों में भिन्नता पाई जाती है।
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4. उच्चावच
भारत का भौतिक स्वरूप अथवा उच्चावच तापमान, वायुदाब, पवनों की गति एवं दिशा तथा ढाल की मात्रा तथा वितरण को प्रभावित करता है। उदाहरणार्थ जून और जुलाई के बीच पश्चिमी घाट तथा असोम के पवनाभिमुखी ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं, तो वही इसी दौरान पश्चिमी घाट के साथ लगा दक्षिण पठार पवनाविमुखी स्थिति के कारण कम वर्षा प्राप्त read more...

भारत की नदियां मुख्य पृष्ठ

प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से सम्बद्ध है।
नदियों के देश कहे जाने वाले भारत में मुख्यतः हिमालय से निकलने वाली नदियाँ(सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र), प्रायद्वीपीय नदी(नर्मदा, कावेरी, महानदी) प्रणाली है।

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ मुख्य पृष्ठ

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्‍लेशियरों( हिमानी या हिमनद) के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्‍तर प्रवाह बना रहता है। 
हिमालय की नदियों के बेसिन बहुत बड़े हैं एवं उनके जलग्रहण क्षेत्र सैकड़ों-हजारों वर्ग किमी. में फैले हैं।
हिमालय की नदियों को तीन प्रमुख नदी-तंत्रों में विभाजित किया गया है। 
सिन्धु नदी-तंत्र, गंगा नदी-तंत्र तथा ब्रह्मपुत्र नदी-तंत्र। 
इन तीनों नदी-तंत्रों का विकास एक अत्यन्त विशाल नदी से हुआ, जिसे ‘शिवालिक’ या हिन्द-ब्रह्म नदी भी कहा जाता था। 
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यह नदी ओसम से पंजाब तक बहती थी। 
प्लीस्टोसीन काल में जब ‘पोटवार पठार का उत्थान’ हुआ तो यह नदी छिन्न-भिन्न हो गई एवं वर्तमान तीन नदी तंत्रों में बंट गई। 

दक्षिण भारत की नदियां मुख्य पृष्ठ

दक्षिण भारत की नदियों को दो भागों में बाँटा गया है –

प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र मुख्य पृष्ठ

भारतीय प्रायद्वीप में अनेक नदियां प्रवाहित हैं।
मैदानी भाग की नदियों की अपेक्षा प्रायद्वीपीय भारत की नदियां आकार में छोटी हैं। 
यहां की नदियां अधिकांशतः मौसमी हैं और वर्षा पर आश्रित हैं।
वर्षा ऋतु में इन नदियों के जल-स्तर में वृद्धि हो जाती है, पर शुष्क ऋतु में इनका जल-स्तर काफी कम हो जाता है। इस क्षेत्र की नदियां कम गहरी हैं, परंतु इन नदियों की घाटियां चौड़ी हैं और इनकी अपरदन क्षमता लगभग समाप्त हो चुकी है। 
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यहां की अधिकांश नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं, कुछ नदियां अरब सागर में गिरती हैं और कुछ नदियां गंगा तथा यमुना नदी में जाकर मिल जाती हैं। 
प्रायद्वीपीय क्षेत्र की कुछ नदियां अरावली तथा मध्यवर्ती पहाड़ी प्रदेश से निकलकर कच्छ के रन या खंभात की खाड़ी में गिरती हैं।   read more...

भारत की झीलें मुख्य पृष्ठ

एक बड़ी पानी का भाग  जो भूमि से घिरा हुआ है उसे  झील कहा जाता है।
अधिकांश  झीलें  स्थायी होती  हैं जबकि कुछ झीलों में बरसात के मौसम के दौरान पानी होता  हैं।
झीले ग्लेशियर और बर्फ की चादरो  , पवन, नदी की गतिविधि से और मानव गतिविधियों से बनती  हैं।
पृथ्वी पर 500,000 झीलों में  103,000 घन किलोमीटर के बराबर के पानी की मात्रा के  भंडार को जमा किया हुआ हैं ।
दुनिया की  अधिकांश  पानी की  झीले उत्तरी अमेरिका (25%), अफ्रीका (30%) और एशिया (20%) में पाइ  जाती  हैं।
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झीलों के प्रकार 
भारत में कई प्राकृतिक व मानवनिर्मित झीलें पायी जाती है।
प्राकृतिक झीलों को कई वर्गो में बांटा गया है।

विवर्तनिक झील
धरातल के बड़े भाग के धसने या उठने से इनका निर्माण होता है।
कश्मीर का वूलर झील(झेलम नदी पर) इसका उदाहरण है।
यह भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है।

लैगून / अनूप झील
तटीय समुद्री जल का कुछ भाग बालू या प्रवाल भित्ति द्वारा मुख्य भूमि से अलग झीलनुमा आकृति बना लेता है।
इसे ही लैगून झील कहते हैं।
चिल्का सबसे बड़ी लैगून झील है।
यह सबसे बड़ी तटीय झील भी है।
यहां नौ-सेना का प्रशिक्षण केन्द्र भी है।
पुलीकट झील(आंध्रप्रदेश व तमिलनाडु) बेम्बनाद(केरल), अष्ठामुडी(केरल), कोलेरू झील(आन्ध्र प्रदेश) अन्य प्रमुख लैगून झीले हैं।

हिमानी निर्मित झील
हिमनदों द्वारा निर्मित गर्तों में हिम के पिघले हुए जल से इस प्रकार की झीलों का निर्माण होता है।
 कभी-कभी हिमनदी के पिघले जल से “हिमोढ़ झीलों” (morane lakes) का निर्माण होता है।
पीरपंजाल श्रेणी के उत्तरी-पूर्वी ढालों पर ऐसी ही झीलें पाई जाती हैं।
हिमानी या हिमनद के अपरदन से बनी झीले - राकसताल, नैनीताल, भीमताल, समताल इनके उदाहरण हैं।

वायु निर्मित झील
हवा द्वारा सतह की मिट्टी को उड़ाकर ले जाने से ऐसी झीलों का निर्माण होता है।
इन्हें ‘प्लाया’ झील भी कहते हैं।
राजस्थान की सांभर, डीडवाना, पंचभद्रा प्रमुख उदाहरण हैं।

डेल्टाई झील
डेल्टाई झीलों का निर्माण डेल्टाई प्रदेशों में कई वितरिकाओं के मध्य छोटी बड़ी झीलों के रूप में होता है।
जो प्रायः मीठे जल की होती हैं।
उदाहरण - कोलेरू झील।

भू-गर्भिक क्रिया से बनीं झीलें
पहाड़ों से बर्फ, पत्थर आदि भूमि पर गिरने से धरातल पर विशाल गड्ढे बन जाते हैं।
इनमें जल भरने से जो झीलें बनती हैं, उन्हें भू-गर्भिक क्रिया से बनीं read more

भारत के बंदरगाह मुख्य पृष्ठ

बंदरगाह देश के व्यापार की नीव होते हैं। 
यहीं से देश में आयात तथा निर्यात किया जाता है।
भारत में 13 बड़े एवं 200 छोटे बंदरगाह है।
प्राचीन काल में सातवाहन एवं चोलों के समय समुद्री व्यापार चरम पर था।
आधुनिक काल में 1856 में “ब्रिटिश इण्डिया स्टीम कम्पनी” की स्थापना के साथ भारत में जहाजरानी परिवहन की शुरुआत हुयी।
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13 बड़े बंदरगाहों में से सर्वाधिक 3 तमिलनाडु में है।
200 छोटे बंदरगाहों में से सर्वाधिक 53 महाराष्ट्र में है।

भारत देश की कुल तट रेखा 7516 कि०मी० लम्बी है। 
यह तट रेखा देश के 13 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को स्पर्श करती है। जिनका विवरण निम्नवत है-
गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, दमन दीव, पोंडीचेरी, लक्ष्यद्वीप, अण्डमान निकोबार।
13 प्रमुख बंदरगाहों में से 6 पश्चिमी तट पर और 6 पूर्वी तट पर स्थित है। 
एक प्रमुख बंदरगाह अण्डमान निकोबार read more

भारत के दर्रे मुख्य पृष्ठ

भारत में अधिक मात्रा में दर्रे पाये जाते हैं दर्रे का मतलब होता है दो पहाड़ों के बीच की जगह, जो नीचे की ओर दब गई हो, ये संरचना ज्यादातर पहाड़ों से नदी बहने की वजह से बनती है।
लेकिन इसके कुछ ओर भी कारण है जैसे - भूकम्प, ज्वालामुखी, जमीन का खिसकना उल्का गिरना इत्यादि।

  “पहाडि़यों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले आवागमन के प्राकृतिक मार्गो को दर्रा कहा जाता है।”

    भारत के प्रमुख दर्रों की राज्यवार सूचि  

जम्मू-कश्मीर के दर्रे 
बनिहाल – जम्मू को श्रीनगर से
पीर पंजाल – जम्मू को पूंछ और राजौरी से
बुर्जिला – श्रीनगर को गिलगित से
जोजीला – श्रीनगर को लेह से
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लद्दाख क्षेत्र के दर्रे
काराकोरम – लद्दाख को चीन के शिंजियांग से
चांग ला – लद्दाख को तिब्बत से
खारदुंग – श्योक और नुब्रा घाटी के बीच
अगहिल – लद्दाख को चीन के सिंकियांग से।
लनक ला – लद्दाख को तिब्बत के ल्हासा से

हिमाचल प्रदेश के दर्रे
बारालाचा दर्रा – मंडी को तिब्बत से
शिपकी दर्रा – किन्नौर को तिब्बत के ज़ान्दा ज़िले से
देब्सा दर्रा – कुल्लू को स्पीति से
नीति दर्रा – कैलाश मानसरोवर के लिए रास्ता
लिपुलेख दर्रा – कुमायूं को तिब्बत से
माना दर्रा – पिथौरागढ़ को तिब्बत से
मंगशा दर्रा – पिथौरागढ़ को तिब्बत से
मुनिंग दर्रा – पिथौरागढ़ को तिब्बत से

सिक्किम के दर्रे
नाथू-ला – चुंबी घाटी को तिब्बत से
जेलेप ला – सिक्किम को तिब्बत से

अरुणाचल प्रदेश के दर्रे
बोमडी ला – त्वांग घाटी को ल्हासा (तिब्बत) से।
दिहांग दर्रा – अरुणाचल प्रदेश को मांडले से
यांग्याप दर्रा – ब्रह्मपुत्र का भारत में प्रवेश मार्ग
दीफू दर्रा – अरुणाचल प्रदेश को मांडले से
लिखापनी दर्रा – अरुणाचल प्रदेश को म्यांमार read more...

भारत के पर्वत मुख्य पृष्ठ

भारत में अनेक पर्वत श्रृंखलाएं हैं। 
पर्वत भौगोलिक विविधता के साथ-साथ अतुलनीय जैव विविधता के भी महत्वपूर्ण स्रोत हैं। 
भारत विश्व के 12 महा वंशाणु केन्द्र का हिस्सा तो है ही, इसके अलावा संसार के जैव विविधता के 25 महत्वपूर्ण स्थानों में से 2 अति महत्वपूर्ण स्थान भारत में ही हैं जैसे ‘पूर्वी हिमालय तथा पश्चिमी घाट’। 
भारत के पर्वत औषधीय पेड़-पौधों व खनिजों की असीमित मात्रा के भंडार हैं। 
इसके अतिरिक्त यह पर्वत देश की जलवायु को भी निर्धारित करते हैं।
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भारत में उत्तरी सिरे पर दो पर्वत श्रृंखलाएं हैं, काराकोरम पर्वत श्रृंखलाएं और हिमालय। 
भारत के मध्य भाग में विध्यांचल की पहाडि़यां हैं जिन्होंने भारत को दो भागों में विभाजित किया है। 
भारत के दक्षिणी तट पर दो पर्वत श्रृंखलाएं है जिन्हें भारत के पूर्वी घाट व पश्चिमी घाट कहते हैं।

हिमालय 

भारत में स्थित एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है।
हिमालय को पर्वतराज भी कहते हैं जिसका अर्थ है पर्वतों का राजा। 
कालिदास तो हिमालय को पृथ्वी का मानदंड मानते हैं।
हिमालय की पर्वतश्रंखलाएँ शिवालिक कहलाती हैं। सदियों से हिमालय की कन्दराओं (गुफाओं) में ऋषि-मुनियों का वास रहा है और वे यहाँ समाधिस्थ होकर तपस्या करते हैं। 
हिमालय आध्यात्म चेतना का ध्रुव केंद्र है। 
उत्तराखंड को श्रेय जाता है इस "हिमालयानाम् नगाधिराजः पर्वतः" का हृदय कहाने का। 
ईश्वर अपने सारे ऐश्वर्य- खूबसूरती के साथ वहाँ विद्यमान है।
 'हिमालय अनेक रत्नों का जन्मदाता है ( अनन्तरत्न प्रभवस्य यस्य), उसकी पर्वत-श्रंखलाओं में जीवन औषधियाँ उत्पन्न होती हैं ( भवन्ति यत्रौषधयो रजन्याय तैल पुरत सुरत प्रदीपः), वह पृथ्वी में रहकर भी स्वर्ग है।( भूमिर्दिवभि वारूढं)। 
हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। 
यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं।
इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर है। 
इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत 7 देशों की सीमाओं में फैला हैं। 
   ये देश हैं- 
पाकिस्तान,अफगानिस्तान , भारत, नेपाल, भूटान, चीन और म्यांमार।

संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। 
विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं।
विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक read more.. 

भारत के द्वीप समूह मुख्य पृष्ठ

भारत के पास कुल 1208 द्वीप समूह हैं। ये संख्या सभी छोटे-छोटे द्वीपों को मिलाकर है।
अंडमान निकोबार द्वीप समूह सबसे बड़ा द्वीप समूह है।
लक्षद्वीप सबसे छोटा द्वीप समूह है।

अंडमान निकोबार

बर्मा (म्यांमार) में हिमालय पर्वत को अराकान योमा पर्वत कहा जाता है, इसे रखाइन पर्वतमाला भी कहते हैं तथा इसका फैलाव उत्तर से दक्षिण की ओर है। 
यही पर्वत श्रृंखला आगे बंगाल की खाड़ी में समुद्र के नीचे से ऊपर उठती है जिसे अंडमान निकोबार द्वीप समूह कहा जाता है।
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अंडमान निकोबार एक केन्द्र शासित प्रदेश है।
अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी “पोर्ट ब्लेयर” है।
कुल द्वीपों की संख्या 572 है। 
सभी छोटे-छोटे द्वीप मिलाकर।
गिनने लायक द्वीप 349 हैं।

     अंडमान निकोबार द्वीप समूह चार भागों में बंटा हुआ है –
उत्तर अंडमान
अंडमान निकोबार द्वीपसमूह का सबसे उच्चतम बिन्दु “सैडल पीक” यहीं पर है जिसकी ऊंचाई 732 मीटर है।

मध्य अंडमान
पूरे द्वीपसमूह का सबसे बड़ा भाग यही है।

दक्षिण अंडमान
अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी “पोर्ट ब्लेयर” यही पर स्थित है ।

लिटिल अंडमान
दक्षिण अंडमान तथा लिटिल अंडमान के बीच के भाग को “डंकन पैसेज” कहा जाता है।
अंडमान द्वीपसमूह के पास (ऊपर की तरफ) ग्रेट कोको द्वीप एवं लिटिल कोको द्वीप है। इन दोनों पर ही म्यांमार का अधिकार है।
उत्तरी अंडमान द्वीप के पास ही नारकोंडम द्वीप (नर्कोन्दम द्वीप) एवं बैरन द्वीप स्थित है यो दोनो ही द्वीप भारत के अधिकार में है। 
इन दोनों ही द्वीपों पर ज्वालामुखी स्थित हैं। 
बैरन द्वीप पर स्थित ज्वालामुखी अभी सक्रीय हैं।

निकोबार द्वीप समूह
लिटिल अंडमान के नीचे “10° चैनल” पड़ता है और उसके बाद निकोबर द्वीप समूह शुरू हो जाता है
निकोबार द्वीप समूह तीन भागो में बटा है।

कार निकोबार
लिटिल निकोबार (बीच में)
ग्रेट निकोबार

निकोबार द्वीप समूह का सबसे दक्षिणी बिन्दू जोकि भारत का भी दक्षिणी बिन्दू है ग्रेट निकोबार पर पड़ता है। इसे “इन्द्रा पॉइंट” या “पिग मेलियन पॉइंट” के नाम से जाना जाता है।

भारत के पठार मुख्य पृष्ठ

पहाड़ का शिखर होता है, जबकि पठार का कोई शिखर नहीं होता है। पठार पहाड़ों की तरह ऊँचे तो होते है परन्तु ये ऊपर से समतल मैदान रूपी होते हैं।
भूमि पर मिलने वाले द्वितीय श्रेणी के स्थल रुपों में पठार अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं और सम्पूर्ण धरातल के 33% भाग पर इनका विस्तार पाया जाता हैं।अथवा धरातल का विशिष्ट स्थल रूप जो अपने आस पास की जमींन से पर्याप्त ऊँचा होता है,और जिसका ऊपरी भाग चौड़ा और सपाट हो पठार कहलाता है। सागर तल से इनकी ऊचाई 600 मीटर तक होती read more...

भारत के उद्योग मुख्य पृष्ठ

भारत औद्योगिक राष्ट्र नहीं हैं।
यह मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र हैं।
आजादी से पहले भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।
आधुनिक उद्योगों या बड़े उद्योगो की स्थापना भारत में 19वीं शताब्दी के मध्य शुरू हुई।
जब कलकत्ता व मुम्बई में यूरोपीय व्यवसायियों या उद्योगों के द्वारा सूती वस्त्र उद्योगो की स्थापना हुईं।
प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप गुजरात में सूती वस्त्र, बंगाल में जूट की वस्तुयें, उड़ीसा व बंगाल में कोयला उद्योग, असम में चाय उद्योग का विशेष विकास हुआ।
उस समय सूती वस्त्र के अलावा शेष सभी उद्योगों पर विदेशियों का अधिकार था।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद लौह-इस्पात, सीमेंट, कागज, शक्कर, कांच, वस्त्र, चमड़ा उद्योगों में उन्नति हुई।
दूसरे विश्वयुद्ध के समय भारत के ओद्यौगिक विकास के मार्ग में कई कठिनाईयां आयी जैसे:-
1) तकनीकी ज्ञान की कमी
2) यातायात के साधनों की कमी
3) बड़े उद्योगो को सरकार द्वारा हतोत्साहित करना।
दोनो महायुद्धों के बीच आजादी से पहले उद्योगों का सर्वांधिक विकास हुआ।
विश्व युद्ध के दौरान हिन्दुस्तान एयर क्राफ्ट कम्पनी, एल्युमिनियम उद्योग, अस्त्र-शस्त्र उद्योगों का विकास हुआ।
विश्व युद्ध के दौरान हिन्दुस्तन एयर क्राफ्ट कम्पनी, एल्युमिनियम उद्योग, अस्त्र-शस्त्र उद्योग का विकास हुआ।
रोजर मिशन की सिफारिश पर जो सन् 1940 में भारत आया था।
इसने भारत के उद्योगों के विस्तार पर बल दिया था।

भारत के प्रमुख उद्योग के प्रकार (Important Industries in India)
लौह एवं इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry)
सीमेन्ट उद्योग (Cement Industry)
कोयला उद्योग (Coal Industry)
पेट्रोलियम उद्योग (Petroleum Industry)
कपड़ा उद्योग (Cloth Industry)
रत्न एवं आभूषण उद्योग (Gems and Jewellery Industry)
चीनी उद्योग (Sugar Industry)
लोहा इस्पात उद्योग 
देश में पहला लौह इस्पात कारखाना 1874 ईस्वी में बराकर नदी के किनारे कुल्टी (आसनसोल, पश्चिम बंगाल) नामक स्थान पर बंगाल आयरन वर्क्स के रूप में स्थापित किया गया था।
बाद में यह कंपनी फंड के अभाव में बंद हो गई तो इसे बंगाल सरकार ने अधिग्रहण कर दिया और इसका नाम बराकर आयरन वर्क्स रखा।
लौह इस्पात उद्योग को किसी देश के अर्थिक विकास की धुरी माना read more...

भारत की कृषि मुख्य पृष्ठ

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी 54.6 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर प्रत्यक्ष तोर पर निर्भर है। 
भारत में कृषि एवं सम्बन्धित क्षेत्र का योगदान 1950-51 में 53.1% था जो 2014-15 में सकल घरेलू उत्पादन का 17.5% रहा
भारतीय कृषि की मानसून पर निर्भरता के कारण भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था को मानसून का जुआ कहते हैं। 
भारत के कुल निर्यात में कृषि का महत्त्वपूर्ण स्थान रहता है। 
देश के कुल निर्यात मूल्य का 12.7 प्रतिशत के लगभग कृषि उत्पादों से प्राप्त होता है।
उत्कृष्ट भौगोलिक स्थिति, समतल भूमि, उपजाऊ मृदा, पर्याप्त जलापूर्ति, मानसूनी जलवायु जैसे कारकों ने भारत को कृषि के क्षेत्र में विशिष्ट देश बना दिया है।
भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी. है उसके 40.5 प्रतिशत भाग पर कृषि कार्य होता है। 
इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत में कृषि पद्धतियों एवं फसलों में भी विविधता दिखाई देती है।
भारतीय कृषि का महत्त्व निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है-
1. सर्वाधिक रोजगार का साधन 
2. उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति 
3. राष्ट्रीय आय का साधन 
4. विदेशी मुद्रा की प्राप्ति 
5. पोष्टिक पदार्थों का उत्पादन
6. यातायात संसाधनों का विकास 

भारतीय कृषि की विशेषताएँ :
1. जनसंख्या की निर्भरता 
2. मानसून पर निर्भरता 
3. सिंचाई की सुविधाओं का अभाव 
4. प्रति हेक्टयर कम उत्पादन 
5. चारा फसलों की कमी 
6. कृषि जोतों का छोटा आकार 
7. खाद्यान्नों की प्रधानता
8. फसलों की विविधता 

भारतीय कृषि की मुख्य समस्याएँ
1. भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता हुआ भार 
2. भूमि का असन्तुलित वितरण 
3. कृषि की न्यून उत्पादकता 
4. मौसम की मार, कभी अति वृष्टि, अनावृष्टि 
5. किसान का भाग्यवादी दृष्टिकोण 
6. कृषि व्यवसाय के रूप में न लेकर जीवन यापन के रूप में है। 
7. सिंचाई के साधनों का सीमित विकास।
8. कृषि का अशिक्षित एवं परम्परावादी होना। 
9. उचित विक्रय व्यवस्था का लाभ न मिलना। 
10. विभिन्न योजनाओं का सामान्य किसान को लाभ नहीं पहुँचना आदि। 

कृषि के प्रकार
भारत की प्राकृतिक दशा, जलवायु, मिट्टी में पर्याप्त भिन्नता के कारण देश के विभिन्न भागों में कई प्रकार की कृषि की जाती है। 
भारत में मुख्यतः निम्न प्रकार की कृषि प्रचलित है। 

1. निर्वहन कृषि
भारत में जीवन निर्वहन कृषि एक परम्परागत कृषि विधि रही है। 
स्वतंत्रता पूर्व से यह जीवन निर्वहन करने वाली एक गहन कृषि के रूप में प्रचलित थी। 
उस समय किसान की जोत का आकार छोटा था और बैलों की सहायता से हल चलाकर खेती करता था। 
इन खेतों पर परिवार के सदस्य ही

भारत की मिट्टियां मुख्य पृष्ठ

मिट्टी को केवल छोटे चट्टान कणों / मलबे और कार्बनिक पदार्थों / ह्यूमस के मिश्रण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होते हैं और पौधों के विकास का समर्थन करते हैं।
मिट्टी के अध्ययन को मृदा विज्ञान(पैडॉलॉजी) कहा जाता है।
Bharat ka Bhugol Notes

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में भारत की मिट्टियों को 8 भागों में विभाजित किया है -
जलोढ़ मिट्टी -
यह नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी है इस मिट्टी में पोटाश की मात्रा अधिक होती है परंतु नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं ह्यूमस की कमी होती है।
यह मिट्टी भारत के लगभग 22% क्षेत्र पर पाई जाती है यह दो प्रकार की होती है
पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बांगर तथा नई जलोढ़ मिट्टी को खादर कहा जाता है।
जलोढ़ मिट्टी उर्वरता की दृष्टि से काफी अच्छी मानी जाती है इसमें धान, गेहूं, मक्का तिलहन, दलहन, आलू आदि फसलें उगाई जा सकती हैं।

काली मिट्टी
इसका निर्माण बेसाल्ट चट्टान ओके टूटने फूटने से होता है।
 इसमें आयरन चुनना एलुमिनियम मैग्नीशियम की बहुलता पाई जाती है।
इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट एव जीवांश की उपस्थिति के कारण होता है।
इस मिट्टी को रेगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
कपास की खेती के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त होती है।
अतः इसे काली कपास की मिट्टी भी कहा जाता है।
अन्य फसलों में जैसे गेहूं ज्वार बाजरा आदि को भी उगाया जा सकता है।
भारत में काली मिट्टी गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र, ओडिशा के दक्षिण क्षेत्र, कर्नाटक के उत्तरी क्षेत्र, आंध्र प्रदेश के दक्षिणी एवं समुंद्रीतटीय क्षेत्र तमिलनाडु के रामनाथपुरम कोयंबटूर तथा तिरुनेलवेली जिलों एवं राजस्थान के बूंदी एवं टोंक जिले में पाई जाती है।
इसकी जल धारण क्षमता अधिक होती है।
काली मिट्टी को स्वत: जुदाई वाली मिट्टी भी कहा जाता है क्योंकि सूखने के बाद इसमें अपने आप दरारें पड़ जाती हैं।

लाल मिट्टी
इसका निर्माण जलवायु भी है परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप दावेदार एम कायांतरित शैलो के विघटन वियोजन से होता है।
इस मिट्टी में सिलिका एवं आयरन की बहुलता होती है।
लाल मिट्टी का लाल रंग लोहा ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है, लेकिन जलयोजित रूप में यह पीली दिखाई पड़ती है।
यह अम्लीय प्रकृति की होती है इसमें नाइट्रोजन फास्फोरस एवं ह्यूमस की कमी होती है।
सामान्यत यह मिट्टी उर्वरता  read more...

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