Lok Devta Baba Teja Ji - राजस्थान के लोक देवता तेजाजी

इस पोस्ट में हम राजस्थान के लोक देवता वीर तेजाजी की जीवनी पढ़ेंगे। 
यह पोस्ट rajasthan gk की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। 
समय-समय पर उत्कृष्ट कार्य, बलिदान, उत्सर्ग या परोपकार करने वाले महापुरुषों को 'लोक देवता' या 'पीर' कहा जाता है।
राजस्थान के पंचपीर-पाबू, हरबू, रामदेव, मांगलियामेहा। पाँचों पीर 'पधारजो, गोगाजी जेहा।

Lok Devta Teja Ji

राजस्थान के लोक देवता तेजाजी | Rajasthan Ke Lok Devta Teja Ji

वीर तेजाजी का जन्म 1074 ई. (विक्रम संवत् 1131) 'खड़नाल' (नागौर) में 'धौल्या' गोत्र के नागवंशीय जाट परिवार में हुआ। 
इनके पिता का नाम 'ताहड़', माता का नाम 'राज कुँवरी' एवं पत्नी का नाम 'पैमल दे' (पन्हेर गाँव-अजमेर के रायचंद्र की पुत्री) था।
तेजाजी को साँपों का देवता, गायों का मुक्तिदाता, कालाबाला का देवता, कृषि कार्यों का उपकारक देवता, धौलिया वीर आदि नामों से जाना जाता है।
ये भी जानें 6 तेजाजी के प्रिय भक्त (जो साँपों का जहर चूसते हैं) 'घोड़ला', घोड़ी (जिसने तेजाजी की मृत्यु का संदेश पहुँचाया) का नाम 'लीळण' (सिणगारी), पूजा स्थल (जो खुले चबूतरे पर स्थित होता है) को थान', इनका प्रतीक चिह्न 'तलवार धारी अश्वारोही योद्धा' (जिसकी जीभ को साँप डस रहा है।), तेजाजी का गीत 'तेजाटेर' कहलाता है। 

तेजाजी की कथा

तेजाजी के संबंध में प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार, एक बार तेजाजी की माँ ने तेजाजी को आदेश दिया, कि हल लेकर खेत जोतने जाओ। 
माँ की आज्ञा के अनुसार तेजा हल लेकर खेत पर चल दिया और दिनभर हल जोतता रहा। 
लेकिन दिन में उसके लिए घर से खाना नहीं आया जब सायं होने लगी तब उनकी भाभी उनके लिए रोटी लेकर खेत पर पहुँची तो तेजाजी ने कहा, कि इतनी देरी से क्यों आई हो? 
तो उनकी भाभी ने झूठ बोला की घर के काम में देरी हो गई और रोटी देने के लिए बच्चों को रोता छोड़ कर आई हूँ। 
तेजाजी को उनके झूठ पर गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा कि भोजन को पक्षियों को डाल दो। 
भाभी को तेजाजी का गुस्सा अच्छा नहीं लगा और कहा कि "इतना क्रोध किस पर दिखा रहे हो, मैं पराई स्त्री हूँ। 
अपनी पत्नी को तो पीहर छोड़ रखी है, जो बाप का काम करती है और मुझसे कड़वा बोलते हो।" 
भाभी की बातें सुनकर घर पहुँचकर अपनी घोड़ी लीलण को कसकर ससुराल पन्हेर के लिए चलने लगे तभी अपशगुन हुआ तो ज्योतिषी को बुलाकर पूछा गया।
ज्योतिषी ने बताया की इस यात्रा में तेजाजी की मृत्यु होगी।

 माँ ने उन्हें रोका किन्तु वे नहीं रूके और चल दिये।

 जब वे अचानक ससुराल पहुँचे तो उनकी सास गाय का दूध निकाल रही थी तो गाय ने दूध की बाल्टी के लात मार दी उनकी सास ने बिना देखे ही उनको गालियाँ देने लगी इस पर तेजाजी कुपित होकर लौटने लगे तभी उनकी पत्नी पैमल ने उन्हें पहचान लिया और उन्हें रोकने के लिए अपनी सहेली लाछां गुर्जरी को भेजा। 
लाछां (हीरा) ने उन्हें ससुराल वापस चलने को कहा परन्तु तेजाजी ने मना कर दिया इस पर लांछा गुर्जरी ने उन्हें अपने घर चलने के लिए मना लिया। 
उसी रात लाछां गुर्जरी की गायों को मेर के मीणा चुरा ले गए इस पर तेजाजी मीणाओं से गायों को छुड़ाने चल दिए और मंडावरिया गांव के पास भीषण युद्ध करके गायें छुड़ा भी लाये लेकिन घर पहुँच कर पता लगा की एक गाय का बछड़ा वहीं रह गया इस पर तेजाजी को पुनः युद्ध में जाना पड़ा। 
रास्ते में एक स्थान पर आग में एक साँप जलते हुए देखा। तेजाजी ने सर्प को अग्नि से बाहर निकाल दिया इससे सर्प उनसे नाराज हो गया तथा क्रोधित होकर बोला, "सुण क मोटा सिरदार, जुल्म कर दीनो, म्हारी छूटती जूण बचा म्हाने क्यों बचा लीनो।
" इस पर तेजाजी ने जवाब दिया, "थारी बजादी ज्यान, बुरों काम कई किणो. तु जस के बदले अपजस किणतर दिनों।" 
इस परा सर्प देवता क्रोधित हो फुफकारने लगा उनको डसने की बात कही, लेकिन तेजाजी ने कहा कि अभी मैं गाय के बछड़े को बचाने जा रहा हूँ वहाँ से लौट आऊँ तब मुझे डस लेना।' 

तेजाजी सर्प देवता को वचन देकर बछड़े को बचाने चल दिए।

इस बार तेजाजी युद्ध में गंभीर रूप से घायल हो गए परंतु बछड़े को मेर के मीणाओं से छुडाकर लाछां के पास छोड़कर वे सर्प के पास पहुँचे। 
मेर के मीणाओं से लड़ते हुए तेजाजी का शरीर क्षत-विक्षत हो गया एवं उनके अंग से खून निकल रहा था। 
सर्प उनका इंतजार कर रहा था। 
तेजाजी के सम्पूर्ण शरीर पर घाव देखकर उसने डसने से मना कर दिया, लेकिन तेजाजी कहाँ मानने वाले थे।
उन्होंने कहा कि आपके लिए शरीर का एक सुरक्षित अंग वादे के मताबिक लाया हूँ, वहाँ डस लें, कहकर अपनी जीभ बाहर निकाल दी। 
द्रवित नागराज ने वचनबद्धता के कारण जीभ पर डस लिया डसने से पूर्व उसने यह भविष्यवाणी की कि जहाँ कहीं भी सर्पदंश पीडित तेजाजी का स्मरण करेगा तथा प्रार्थना करेगा वह पीड़ित विष से मुक्त हो जायेगा।
 इसलिए वे नागों के देवता के रूप में पूज्य व प्रसिद्ध हो गए। 
इनकी मृत्यु के पश्चात् उनकी पत्नी पैमल दे सती हुई थी। 
तेजाजी की मृत्यु का समाचार उनकी घोडी लीळण द्वारा उनके घर पहुँचाया गया। 

तेजाजी को अजमेर जिले के ब्यावर कस्बे से 10 किमी. दूर 'सैंदरिया गाँव में सर्प ने डसा, तो सुरसूरा (किशनगढ़अजमेर) में उनकी मृत्यु हुई। 

पहले लोक देवता जिन्हें सर्पदंश के इलाज के लिए आयुर्वेद का प्रयोग किया। 
आज भी भांवता (अजमेर ) में स्थित तेजाजी के मंदिर में सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति की गौमुत्र से निःशुल्क चिकित्सा की जाती है। 
तेजाजी अजमेर जिले के सर्वप्रमुख इष्ट देवता हैं तो उनकी कर्मस्थली दुगारी गाँव (बूंदी) है।
तेजाजी की कृषि के देवता के रूप में मानते है और किसान हल जोतते वक्त तेजाजी की जीवनी गाता है। 
सुरसरा (अजमेर) में इनका मंदिर था जिसकी मूर्ति को मारवाड़ के महाराजा अभयसिंह के काल में परबतसर का हाकिम परबतसर (नागौर) ले गया तब से तेजाजी का प्रमुख स्थल परबतसर (नागौर) में स्थापित हो गया। 
तेजाजी के नाम पर परबतसर नागौर में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्लपक्ष दशमी को राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है।
सहरिया जनजाति का अराध्य देव-वीर तेजाजी जिनके नाम पर बारां जिले में सीताबाड़ी (सहरिया जनजाति का कुंभ) तेजाजी का मेला आयोजित किया जाता है।

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