राजस्थान के भौतिक प्रदेश - Rajasthan Ke Bhotik Pradesh PDF in Hindi

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राजस्थान के भौतिक प्रदेश  

प्रो. ए.के. तिवारी एवं डॉ.एच.एम. सक्सेना ने राजस्थान का प्रादेशिक भूगोल' में राजस्थान के धरातल, जलवायु, नदी-बेसिन आदि को आधार मानकर उन्हें प्रशासनिक सीमाओं के साथ समन्वित कर राजस्थान के प्रमुख गौण, तृतीयक एवं सूक्ष्म प्रदेशों के रूप में चार स्तरीय प्रदेशों का निर्धारण किया है।
संरचात्मक दृष्टि से राजस्थान का भौतिक स्वरूप उत्तरी वृहत मैदान तथा प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा है।
राजस्थान को चार भौतिक भागों में विभाजित किया गया है-
Rajasthan Ke Bhotik Pradesh


1. उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश
2. मध्य अरावली प्रदेश
3. पूर्वी मैदान प्रदेश
4. दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश

उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश 

उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश राज्य के लगभग 61.11 प्रतिशत क्षेत्र में फैला हुआ है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश में राज्य की 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
पहले राजस्थान में उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश 58 प्रतिशत ही था, परंतु अरावली पर्वतमाला अत्यधिक कटी-फटी होने के कारण थार के मरूस्थल का विस्तार लगातार पश्चिम से पूर्व की ओर हो रहा है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश में राज्य के श्रीगंगानगर, जोधपुर,  बीकानेर, नागौर, जैसलमेर, सीकर, बाड़मेर, झुंझुनूं, जालौर, चूरू, पाली और हनुमानगढ़  जिले शामिल है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश राज्य के चार संभागों बीकानेर, जयपुर, अजमेर जोधपुर में फैला हुआ है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश की जलवायु शुष्क व अत्यधिक विषम है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश में 20 से 50 सेमी. तक वर्षा होती है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश का गर्मियों में उच्चतम तापमान 49 डिग्री से. तथा सर्दियों में निम्नतम तापमान -3 डिग्री से. तक रहता है।
थार के मरूस्थल का औसत वार्षिक तापमान 22 डिग्री से. है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश में रेतीली बलुई मिट्टी पाई जाती है।
रेतीली बलुई मिट्टी राज्य के सर्वाधिक क्षेत्र में पाई जाती है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश की प्रमुख फसल ग्वार, बाजरा व मोठ है।
मरूस्थलीय प्रदेश की प्रमुख वनस्पति मरुद्भिद प्रकार की है।
कांटेदार मरूस्थलीय पौधे 'जीरोफाइट्स' कहलाते है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश के प्रमुख अभयारण्य मरूमरू उद्यान राज्य का क्षेत्रफल में सबसे बड़ा अभयारण्य है।
यह 3162 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश से राज्य का सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग एन.एच.-15/62 गुजरता है।
जिसकी लम्बाई 875 किमी है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश में बहने वाली प्रमुख नदियां घग्घर व लूणी है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश राज्य में सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व (103) वाला मरूस्थल है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश को दो भागों में विभाजित किया गया है तथा इसे दो भागों में विभाजित करने वाली रेखा 25 सेमी. समवर्षा रेखा है -

1. पश्चिमी विशाल मरूस्थल/रेतीला शुष्क मैदान- 

25 सेमी. वर्षा रेखा के पश्चिम में स्थित क्षेत्र।

2. राजस्थान बांगर/बांगड़ या अर्द्धशुष्क मैदान- 

पूर्व में 50 सेमी. व पश्चिम में 25 सेमी. वर्षा रेखा द्वारा सीमांकित किया गया क्षेत्र।

पश्चिमी विशाल मरूस्थल/रेतीला शुष्क मैदान 

• रेतीले शुष्क मैदान के दो उपविभाग है
(अ) बालूकास्तूप युक्त मरूस्थलीय प्रदेश
(ब) बालूकास्तूप मुक्त/रहित क्षेत्र

बालूकास्तूप युक्त मरूस्थलीय प्रदेश 

इस क्षेत्र में बालू रेत के विशाल टीले पाये जाते है।
जो तेज हवाओं के साथ अपना स्थान बदलते रहते है।
बरखान एवं बरखानोइड्स- बरखान बालुकास्तूप अर्द्ध-चन्द्राकार होते हैं जो पवन के अपरदन, परिवहन एवं निक्षेपण कार्य का अनूठा समन्वय प्रस्तुत करते हैं।
* बरखान बालुकास्तूप अधिकतर 20 सेन्टीमीटर (200 मि.मी.) की समवर्षा रेखा के पश्चिम में पाये जाते हैं।
पोकरण-जैसलमेर रामगढ़ के पथरीले स्थलाकृतिक क्षेत्र बरखान प्रवाह के लिए आदर्श सतह प्रदान करते हैं तथा वनस्पति-विहीन होते हैं।
वायु द्वारा लाई गई समस्त बालू का भार शीर्ष के छोर पर वायु की मन्द गति पड़ने के कारण छोड़ दिया जाता है तथा इसकी दोनों भुजाओं के बीच वायु की रगड से गर्त बन जाता है जिसे स्थानीय भाषा में ढांढ या थली
कहते हैं।

अनुप्रस्थ बालुकास्तूप- जब दीर्घकाल तक हवा एक ही दिशा में चलती है तब पवन की दिशा के समकोण पर इस प्रकार के बालुकास्तूप बनते हैं।
* ये थार मरुस्थल के पूर्वी तथा उत्तरी भागों में भारत.पाक सीमा के क्षेत्र के बीकानेर जिले के पुंगल के चारों ओर, हनुमानगढ़ जिले में रावतसर, श्रीगंगानगर में सूरतगढ़, चूरू, झुन्झुनू जिलों में पाये जाते हैं।

पवनानुवर्ती या रेखीय बालुकास्तूप- रेखीय लम्बवत् बालुकास्तूपों के सोर महोदय, 1989 ने तीन प्रकार बताये हैं-
1. सीफ
2. वनस्पति युक्त रेखीय
3. पवनविमुख रेखीय।
* इन बालुकास्तूपों पर वनस्पति आवश्यक रूप से दिखाई देती है।
ये बालूका स्तूप लम्बवत् समानान्तर श्रेणीयों के समान दिखाई देते हैं।
* इनका विस्तार जैसलमेर के दक्षिण-पश्चिम, रामगढ़ के दक्षिण-पश्चिम, जोधपुर एवं बाड़मेर जिलों में पाया
जाता है।

पेराबोलिक बालूकास्तूप

थारमरूस्थल में अधिकांश बालूकास्तूप इसी प्रकार के है इनका निर्माण वनस्पति एवं समतल मैदानी भाग के बीच उत्पाटन से होता है।
इनकी आकृति महिलाओं के हेयरपिन की तरह होती है।

तारा बालूकास्तूप

इनका निर्माण संशलिष्ट और अनियतवाही पवनों के क्षेत्र में ही प्रमुखतः होता है।
(लंकाश्टर, 1987 एवं फ्राइबरजर, 1979 ) इनका निर्माण प्रमुखतः (1) मोहनगढ़ क्षेत्र के जैसलमेर पोकरण भाग में और (2) सूरतगढ़ क्षेत्र में मरुस्थल के उत्तरी पार्श्व . पर पाया जाता है। (भूगोल व्याख्याता परीक्षा - 2016) अवरोधी बालूका स्तूप- किसी भी अवरोध के कारण बालू के जमाव से बने बालूका स्तूप ही अवरोधी बालुकास्तूप कहलाते है।
* छोटी झाड़ी, मृत पशु कंकाल, पेड़, भवन, आवास, अधिवास आदि के सहारे नाभि केन्द्र निर्मित होकर शनैःशनैः इन टीलों का निर्माण हो जाता है।
पुष्कर, बूढ़ा पुष्कर, नाग पहाड़, बिचून पहाड़, जोबनेर पहाड़, सीकर की हर्ष पहाड़ियाँ, कुचामन की पहाड़ियाँ इसी प्रकार के अवरोधी टीलों को जन्म देती हैं।
इन्हें अवशिष्ट अवरोधी जीवावशेष युक्त बालुका स्तूप भी कहते है।
स्क्रव कापीस बालुकास्तूप- छोटी-छोटी झाड़ियों घास के झण्ड आदि के आसपास वायु के पवनानुवर्ती पर पवनविमुखी ढालों पर बालू क जमने एवं उन्ह दबा लेने से जो इधर-उधर अनियमित बालूकास्तूप बनते हैं।
उन्हें स्क्रव कापीस बालुकास्तूप कहते हैं।
पश्चिमी मरुस्थली प्रदेश में इस प्रकार के बालूकास्तूप सभी स्थानों पर देखने को मिलते हैं।
नेटवर्क बालूकास्तूप- ये उत्तर-पूर्वी मरूस्थलीय भाग हनुमानगढ़ से हिसार, भिवानी (हरियाणा) तक मिलते है। लिटिल रन- कच्छ की खाड़ी के क्षेत्र का मैदान।
लघु मरूस्थल- थार का पूर्वी भाग जो कच्छ से बीकानेर तक विस्तृत है।
यहा की औसत वर्षा 25 सेमी. है।
महान मरूस्थल- श्री गंगानगर से बाड़मेर तक सीमा रेखा से लगा हुआ भाग।
रेगिस्तान मार्च- रेगिस्तान का धीरे-धीरे आगे खीसकना।
रेगिस्तान मार्च के लिए जैसलमेर का नाचना गांव प्रसिद्ध है।
मार्च से जलाई- बालुकास्तूपों में अपरदन और स्थानांतरण इस अवधि के दौरान सर्वाधिक होता है।
जोधपुर- यहां सभी प्रकार के बालूकास्तूप पाये जाते है।
आगोर- प्राचीन काल में मरूस्थलीय प्रदेश के घरों में उपयोग लेने हेतु जल के टांके बनाए जाते थे, जिन्हें स्थानीय भाषा में आगोर कहते है।
बजादा- मरूस्थल में स्थित पर्वतीय क्षेत्र के नीचे निम्न भूमि वाले क्षेत्र को जहां पर्वतीय जल आकर समाप्त हो जाता है।
इन्सेल बर्ग- रेगिस्तान क्षेत्र में ढ़ालनुमा पाई जाने वाली खड़ी/ सीधी चट्टानों की आकृति को हम जर्मन भाषा में इन्सेल बर्ग तथा स्थानीय भाषा में पर्वत कहते है।
* इनके चारों ओर पानी होता है, राजस्थान में इन्सेल बर्ग के उदाहरण है- सांभर झील, नक्की झील।
* यह सम्पूर्ण प्रदेश अरावली से दक्षिण-पश्चिम की तरफ ढाल वाला प्रदेश है, जिसमें कहीं-कहीं प्राचीन चट्टानो की पहाड़ियाँ दिखाई दे जाती हैं।
अधिकांश पहाड़िया 'बोर्नहार्ट' या 'इन्सलबर्ग' के रूप में देखी जाती हैं।

बालुका स्तूपों का स्थानान्तरण

अतः बालुका स्तूपा के स्थानान्तरण एवं बालू के प्रवाह की रोकथाम के लिए वृक्षारोपण, शेल्टर बेल्ट वृक्षारोपण, ट्रेन्च वृक्षारोपण, बॉक्स वृक्षारोपण, समोच्यरेखा वृक्षारोपण आदि तथा मानव क्रियाओं का इन अस्थिर बाल क्षेत्रों में सीमितता, अति पशु चारण पर प्रतिबन्ध आदि कार्य सुनिश्चित किया जाने चाहिए।
गिरीपद/पेड़ीमेंट- रेगिस्तानी प्रदेश में पाये जाने वाले पर्वत के नीचे वाला स्थान जहां मरूस्थल की रेत/बालू रेत आकर इकट्ठी हो जाती है, यह गिरीपद/पेड़ीमेंट कहलाता है।
नेहड़- नेहड़ को सामान्य भाषा में जल का समुद्र कहते हैं।
* सौ साल पहले राजस्थान के बाड़मेर व जालौर जिले में समुद्र का जल लहराता था।
जैसलमेर जिले की सम उपतहसील के चांदन गांव में एक नलकूप खोदा गया।
इस कारण चांदन गांव के नलकूप को चंदन नलकूप/ थार का घड़ा के उपनाम से भी जाना जाता है।
चांदन का वास्तविक नाम चौहान है।
मावठ/महावट/शीतकालीन वर्षा- पश्चिमी विक्षोभों (भूमध्यसागरीय चक्रवात) से होने वाली वर्षा।
* यह वर्षा रबी की फसल के लिए लाभदायक होती है।
* राजस्थान में इसे गोल्डनड्रोप्स या सोने की बूंदों के नाम से भी जाना जाता है।
भभूल्या/भतूल्या- गमियों में तेज हवा के चलने से मिट्टी उड़ने से बनने वाले चक्रवातों को स्थानीय भाषा में भभूल्या/भतूल्या कहते है।
जिनमें हवाएं गोल घेरे के रूप में घूमती है, जिसके कारण आकाश में धूल उड़ती रहती है, इसके केन्द्र में निम्न वायुदाब होता है और यह चक्रवात का अत्यंत सूक्ष्म रूप होता है।
यह ग्रीष्म ऋतु में दोपहर के समय पैदा होते है।
पीवणा- यह मरूस्थलीय क्षेत्र में पाया जाने वाला जहरीला सर्प है।
जो डंक नहीं मारता बल्कि रात्रि को सोते हुए व्यक्ति के श्वास को पीकर मार देता है।
बाप बोल्डर्स कार्बोनिफेरस युग से संबंधित है।
राजस्थान में निम्नलिखित परम्परागत जल संरक्षण की विधियाँ सदियों से प्रचलित हैं

नाड़ी 

यह एक प्रकार का पोखर होता है जिसमें वर्षा का जल संचित होता है।
पश्चिमी राजस्थान में सामान्यतः प्रत्येक गाँव में पोखर का निर्माण किया जाता है, जिसमें वर्षा का जल संचित कर लिया जाता है।

टोबा

यह भी नाड़ी के समान किन्तु अधिक गहरा होता है तथा पश्चिमी राजस्थान में पारम्परिक जल स्रोत के रूप में प्रचलित है।
इसके जल का उपयोग पेय जल, पशुओं के लिये तथा सीमित सिंचाई के लिये किया जाता है।

बावड़ी

राजस्थान में बावड़ियों के निर्माण की परम्परा रही है।
यह एक सीढ़ीदार वृहत् कुआ होता है।
इसमें वर्षा के जल के अतिरिक्त भूमिगत जल का स्रोत भी होता है।

खड़ीन

खड़ीन जल संरक्षण की परम्परागत विधि है जो तकनीकी दृष्टि से भी उत्तम है।
जैसलमेर में इनका निर्माण पन्द्रहवीं सदी में प्रारम्भ हुआ था और आज भी इस क्षेत्र में लगभग 500 खड़ीन है खड़ीन मिट्टी का बाँधनुमा अस्थाई तालाब होता है जिसे ढाल वाली भूमि के नीचे बनाया जाता है तथा दो तरफ पाल उठाकर तथा तीसरी ओर पत्थर की दीवार बनाई जाती है।

टांका या कुंडी

यह भी वर्षा के जल को संग्रह करने का साधन है जिसका प्रचलन मरुस्थली क्षेत्रों में है।
टांका या कुंडी या कुंड का निर्माण पेय जल हेतु किया जाता है।

कुंई

पश्चिमी राजस्थान में कुंई बनाने की परम्परा है, उन्हें "बेरी' भी कहते हैं।
इनका निर्माण तालाब के पास किया जाता है जिससे उनके रिसाव का पानी इसमें आता है।
यह 10 से 12 मीटर तक गहरी होती है तथा सुरक्षा के लिये ढका जाता है।
बीकानेर, जैसलमेर जिलों में कुंई का प्रचलन अधिक है।

बालूकास्तूप मुक्त/रहित क्षेत्र

• रेतीले शुष्क मैदान के पूर्वी भाग में बालूकास्तूप मुक्त प्रदेश है।
जिसमें बालूकास्तूपों का अभाव है।
* इन क्षेत्रों को जैसलमेर, बाड़मेर का चट्टानी प्रदेश भी कहते है।
यह सारा क्षेत्र परतदार चट्टानों से ढका है, जो टरसियरी काल से प्लीस्टोसीन काल की है।
इन चट्टानों में कई प्रकार के जुरासिक काल के वनस्पति अवशेष एवं जीवावशेष पाए जाते है।
जैसलमेर का आकलवुड फोसिल्स पार्क इसी का उदाहरण है।
टरसियरी कालीन चट्टानों में तेल व गैस के भण्डार भी पाए जाते है।
बाड़मेर का गुढ़ामालानी व बायतु क्षेत्र तथा जैसलमेर क्षेत्र में तेल व गैस के विशाल भण्डारों का मिलना
टरसियरी कालीन चट्टानों का होना माना जाता है।
जैसलमेर में स्थित प्लाया झीलों के नम क्षेत्र को खड़ीन कहा जाता है।
कृत्रिम रूप से खड़ीन बनाने का कार्य जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मण करते है।
प्लाया झीलों को रन/टाट/मरहो भी कहा जाता है।
मुलायम लवण की परत युक्त प्लाया को सेलीनास कहते है।
तल्लीयों में वर्षा का जल भर जाने से बनी अस्थायी झीलों को प्लाया कहते है।

रन/टाट

बालूकास्तूप के बीच में अस्थाई झीलें, इन झीलों के प्रकार- कनोड़ झाकरी, बरमसर, पोकरण (जैसलमेर), थोब (बाड़मेर), बाप (जोधपुर), तालछापर (चूरू)।
मरुस्थलीय क्षेत्र में विशिष्ट लवणीय झीलों को डांड कहा जाता है।

बेरी

नाड़ी और खड़ीन के आस-पास रिसने वाले जल क पुन: उपयोग के लिए छोटे-छोटे कुएं बनाए जाते है। जिन्हें बेरी कहते है।
बालूकास्तपों की निम्न भूमि को तल्ली कहा जाता है।
बालूकास्तूपों पर लहरदार छोटी-छोटी परतों को उर्मिका कहा जाता है।
लम्बाई में स्थित बालूकास्तूपों को स्थानीय भाषा में डोल कहा जाता है।
झाड़ियों के पीछे निर्मित बालूकास्तूपों को नेरवा कहते है।

बालसन

मरूस्थल का वह भाग जो पर्वतों तथा चट्टानों से घिरा हुआ है और उसके मध्य में जल के इकट्ठे होने से बनी झील या बेसिन बालसन कहलाती है।
लाठी सीरीज क्षेत्र- पाकिस्तान की सीमा के सहारे जैसलमेर में मोहनगढ़ से पोकरण तक अवसादी चट्टानों का समूह पाया जाता है।
* 2007 में काजरी के वैज्ञानिक को यहां 80 मी. लंबी तथा 60 मी. चौड़ी पृथ्वी के अंदर बहती हुई जल धारा प्राप्त हुई, जिसे इन वैज्ञानिकों ने भूगर्भिक जलपट्टी/लाठी सीरीज का नाम दिया।
* लाठी सीरीज क्षेत्र में धामण, करड़ी, तरडगम, व सेवण - नामक स्वादिष्ट व पौष्टिक घास उत्पन्न होती है।
* सेवण घास को गोडावण की प्रजनन स्थली भी कहते है।

राजस्थान बांगर/बांगड़ या अर्द्धशुष्क मैदान 

इस मैदान को चार उपविभागों में विभाजित किया गया है
(i) घग्घर मैदान
(ii) शेखावाटी प्रदेश
(iii) नागौरी उच्च भूमि.
(iv) लूनी बेसिन

घग्घर मैदान

घग्घर नदी का मैदान मुख्य रूप से श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में पाया जाता है।
यह शिवालिक (हिमालय) से लाई गई जलोढ़ मिट्टी द्वारा निर्मित है।
घग्घर नदी के पाट को नाली तथा उत्तर-पूर्वी उपजाऊ मिट्टी के क्षेत्र को बग्गी कहा जाता है।
राजस्थान के दो शहर बालोत्तरा व हनुमानगढ़ जंक्शन ऐसे क्षेत्र है जहाँ पर नदी का पाट कुछ ऊपर-नीचे है।
* लूनी नदी में अधिक जल होने पर बालोतरा में बाढ़ आती है।
* घग्घर में अधिक जल आने पर हनुमानगढ़ जंक्शन में बाढ़ आती है।

शेखावटी प्रदेश 

बांगर प्रदेश/शेखावाटी क्षेत्र में जमीन के नीचे चने की एक विशाल परत पाया जाता है।
अत: वर्षा का पानी ऊपरी सतह पर न बहकर सतह कनाच चूने का परतों में बहता है।
अत: इस क्षेत्र को आंतरिक जल प्रवाही क्षेत्र भी कहते है।
शेखावटी क्षेत्र में पानी के कच्चे कुएं खौदे जाते है. जिन्हें स्थानीय भाषा में जोहड़ या नाड़ा कहते है।
ढूंढाड़ क्षेत्र में स्थानीय भाषा में कुंओं को बेरा कहते है।
बांगर प्रदेश में सर्वाधिक बालूका स्तूप पाये जाते है।
जिनके मध्य वर्षा का जल इकट्ठा हो जाता है. जिसे सर या सरोवर कहते है।
जैसे- सालिसर, मानसर. जसूसासर आदि इसके उदाहरण है।
वह क्षेत्र जहाँ नदियाँ प्राचीनकाल में बहती हो और वर्तमान में कोई नदी नहीं बहती है।
अतः पुरानी उपजाऊ मिट्टी धीरे-धीरे अनुपजाऊ मिट्टी बन जाए।
सामान्य भाषा में अनुपजाऊ इस मिट्टी के मैदान को बांगर (शेखावटी) कहते है।
वह क्षेत्र जहां नदियां प्रतिवर्ष बहती है और अपने साथ उपजाऊ मिट्टी बहाकर लाती है।
इसी उपजाऊ मिट्टी से बने मैदान को खादर कहते है।
शेखावटी क्षेत्र में पाये जाने वाले घास के मैदान को स्थानीय भाषा में बीड़ कहते है।
ढूंढाड़ क्षेत्र में इन घास के मैदानों को स्थानीय भाषा में बीड़ा कहते है।
नदियों के द्वारा मिट्टी के कटाव (अवनालिका अपरदन) से बड़े-बड़े खड्डे बन जाते है, जिन्हें स्थानीय भाषा में बीहड़ कहते है।
अरावली पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी के अरावली से उत्तरती हुई उपजाऊ हरी पट्टीयों को रोही के नाम से जाना
जाता है।

नागौरी उच्च भूमि 

• लूनी, बेसिन एवं शेखावटी प्रदेश के मध्य स्थित नागौर जिले
की ऊंची उठी हुई भूमि को 'नागौरी-उच्च भूमि' कहते है।
इस प्रदेश की मिट्टी में सोडियम-क्लोराइड पाया जाता है।
इस प्रदेश की समुद्रतल से औसत ऊंचाई 300-500
मीटर है। सर्वाधिक खारे पानी की झीलें (सांभर, डीडवाना, कुचामन) इसी क्षेत्र में स्थित है।
जहाँ "केशकत्व पद्धति' से नमक तैयार किया जाता है।
हहरा कबूतर मूलत: उत्तरप्रदेश में पाया जान वाला हरियल पक्षी है।
जो कभी जमीन पर नहीं बैठता है।
राजस्थान में हरे कबूतर नागौरी उच्च-भूमि तथा
सरिस्का अभयारण्य (अलवर) में पाए जाते है।

लूनी बेसिन

नागौर, पाली,जोधपुरतथा बाड़मेर, जालौर क्षेत्र इस बेसिन में शामिल है।
छप्पन की पहाड़ियाँ बाड़मेर इसी क्षेत्र के अंतर्गत आती है।
उच्चावच तथा शुष्कता की दृष्टि से मरुस्थलीय प्रदेश के चार उपविभाग है -
1. महान मरुस्थल- जो भारत-पाक सीमा के सहारे पूर्णतः बालूका स्तूपों से आच्छादित प्रदेश है।
2. चट्टानी प्रदेश- बाड़मेर-जैसलमेर-बीकानेर का चट्टानी प्रदेश।
3. लघु मरुस्थल- जो चट्टानी प्रदेश के पूर्व में कच्छ की खाड़ी से बीकानेर तक विस्तृत है।
4. अर्द्ध शुष्क प्रदेश- जो लूनी बेसिन और शेखावाटी को सम्मिलित करता है।

भू-गर्भशास्त्रियों के अनुसार इस प्रदेश में इयोसीन काल एंव प्लीस्टोसीन काल के प्रारम्भ तक बहुत विस्तृत समुद्र था, जिसके अवशेष विभिन्न चट्टानी समूहों में पाये जाते हैं।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश लगभग 1,75,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश की समुद्र से सामान्य ऊंचाई 200 से 300 मीटर है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर 640 किमी. लम्बा तथा पश्चिम से पूर्व की ओर लगभग 300 किमी. चौड़ा है।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने मरू प्रदेश को 'गुर्जरात्रा प्रदेश' के नाम से पुकारा है।
डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने राजस्थान के मरूस्थल को रूक्ष क्षेत्र कहा है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश का ढाल पूर्व से पश्चिम ।
तथा उत्तर से दक्षिण या उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश को थार मरूस्थल थली या शष्क बालू का मैदान के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश ग्रेट पेलियो आर्कटिक अफ्रीका मरूस्थल का पूर्वी भाग है।
मरूस्थलीय प्रदेश को लीबिया तथा मिश्र में 'सिटिर' के नाम से जाना जाता है।
मरूस्थलीय प्रदेश के उत्तर-पूर्वी ऊंचे भाग को 'थली' तथा दक्षिण-पश्चिमी में स्थित नीचे भाग को 'तली' कहते है।
• बलुई मरूस्थल को अफ्रीका के सहारा में इर्ग तथा तुर्कीस्तान में कोडर्म कहा जाता है।
पाकिस्तान में थार मरूस्थल को चोलीस्तान कहा जाता है।
थार मरूस्थल विश्व का सबसे युवा मरूस्थल है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला मरूस्थल है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश में विश्व में सर्वाधिक जैव . विविधता पाई जाती है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला मरूस्थल है।
थार का मरूस्थल भारत के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात राज्यों में फैला हुआ है।
थार का मरूस्थल विश्व का एकमात्र ऐसा मरूस्थल है जिसके निर्माण में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं का योगदान है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश को 50 सेमी. वर्षा रेखा अन्य भागों से अलग करती है तथा इस भू-भाग की पश्चिमी सीमा रेडक्लिफ रेखा बनाती है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश में पाई जाने वाली वनस्पति कैर, बैर, फोग, बबूल, खेजड़ा व सेवण घास है।
उत्तर-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश में बहने वाली प्रमुख नहर इन्दिरा गांधी नहर है।

राजस्थान के प्रमुख अकाल 

सूखे के कारण होने वाले अकाल को तीन भागों में विभाजित किया गया है-
1. अन्न अकाल
2. अन्न व चारे का अकाल
3. त्रिकाल

राज्य में जैसलमेर, बाड़मेर तथा जोधपुर जिले अकाल की स्थिति में सर्वाधिक प्रभावित होते है।
कर्नल जेम्स टॉड ने अकाल व सूखे की समस्या को प्राकृतिक रोग की संज्ञा दी है।
फायसागर व राजसमंद झील का निर्माण अकाल राहत कार्यों के तहत करवाया गया।
चालीसा का अकाल- 1783 ई. में पड़े अकाल को कहा गया है।
पंचकाल- 1812-13 ई. में पड़े अकाल को कहा गया है।
सहसा मूदसा अकाल- 1842-43 ई. में पड़े विनाशकारी अकाल को कहा गया है।
त्रिकाल- 1868-69 ई. में पड़े अकाल को कहा गया है।
इसमें अन्न, जल व घास की कमी रही।
छपनिया अकाल- 1899-1900 ई./विक्रम संवत 1956 में पड़े अकाल को कहा गया है।
खेजड़ी का वृक्ष इस अकाल में लोगों का सहारा बना।
वृहद् अकाल/मैक्रोड्रॉट- 2002-03 ई. में पड़ा अकाल।
* यह 100 वर्षों में सबसे भीषण अकाल था।
तीजो कुरियो आठवों काल- राजस्थान में हर तीसरे साल एक छोटा अकाल व हर आठवें साल एक बड़ा अकाल पड़ता है।

मध्यवर्ती अरावली प्रदेश 

मध्यवर्ती अरावली प्रदेश राजस्थान के 9 प्रतिशत क्षेत्रमा हुआ है।
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश में राज्य के 10 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश में शामिल जिले- सिरोही, अजमेर, उदयपुर, अलवर, डूंगरपुर, जयपुर, प्रतापगढ़, सीकर,  चितौड़गढ, झुंझुनूं, भीलवाड़ा, पाली और राजसमंद।
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश में उप आर्द्र जलवायु पाई जाती है।
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश में वार्षिक वर्षा का औसत 50-90 सेमी. है।
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश में पाई जाने वाली प्रमुख मिट्टी लाल, भूरी व कंकरीली है।
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश की प्रमुख फसल मक्का है।
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश के प्रमुख अभयारण्य में सीतामाता, कुंभलगढ़ व माउण्ट आबू अभयारण्य है।
अरावली प्रदेश के समानान्तर चलने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग एन.एच. 8 है।
जो कि राज्य का सबसे व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग है।
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश में बहने वाली प्रमुख नदियांबनास अरावली के पूर्व में निकलने वाली नदियां अपना जल बंगाल की खाड़ी में तथा पश्चिम में निकलने वाली नदियां अपना जल अरब सागर में लेकर जाती है।
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश में पाई जाने वाली प्रमुख वनस्पतिढाक, गुलर, आम, जामुन, शीशम, आंवला, नीम, हरड़।
अरावली पर्वत माला को प्राचीन काल में आड़ाहुल्ला, परिपत्र, एपोकॉपी, मॉडिस डेयोरम पेयोमा एपेलांटी के नाम से जाना जाता था।
 अरावली को अदावता (Ada vata) भी कहते है।
इसका 37ef 2 - A beam lying across अरावली पर्वतमाला विश्व की सबसे प्राचीनतम पर्वतमाला अरावली पर्वत श्रृंखला का शाब्दिक अर्थ है- चोटियों पंक्ति ।
अरावली पर्वतमाला एक अवशिष्ट पर्वतमाला है।
भूगर्भिक ऐतिहासिक दृष्टि से अरावली पर्वत माला पर काल के भूखण्ड गोडवाना लण्ड का अवशेष उत्पत्ति (निर्माण) 650 मिलियन वर्ष (65 करोड बा पर्व 'प्री-कैम्ब्रेसियन कल्प (युग)' में हई।
अरावली पर्वतमाला प्री-कैम्ब्रेसियन चट्टानों का परिवार रूप है।
प्री-कैम्ब्रेसियन चट्टानों का आधारभूत वर्णन ए ने 1923 में किया था।
राजस्थान में अरावली का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर है।
राज्य में अरावली का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर देखने पर घटता हुआ तथा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर देखने पर बढ़ता हुआ दिखाई देता है।
अरावली पर्वतमाला राजस्थान को 50 सेमी. वर्षा रेखा के रूप में दो भागों में विभाजित करती है।
अरावली के उत्तर-पश्चिम में बरसात कम होती है।
जबकि दक्षिण-पूर्व में बरसात अधिक होती है।
अरावली पर्वतमाला 'भारत की महान जल विभाजक रेखा' कहलाती है।
राजस्थान में पश्चिमी मरूस्थल को पूर्व की ओर बढ़ने से अरावली पर्वतमाला ही रोकती है।
अरावली पर्वतमाला सिंधु तथा गंगा नदी तंत्र के बीच जल विभांजक का कार्य करती है।
अरावली पर्वतमाला ही बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून को रोककर पूर्वी राजस्थान में वर्षा करती है।
अरावली पर्वतमाला दक्षिणी-पश्चिमी मानसून या अरबसागरीय मानसून के समानान्तर होने के कारण वर्षा के बादलों की रोकने में असक्षम होती है अतः ये मानसून बगैर वर्षा के ही आगे बढ़ जाते हैं।
अरावली व पठारी प्रदेश खनिजों की दृष्टि से राज्य के सबसे सम्पन्न प्रदेश है।
लाठी सीरीज क्षेत्र- अरावली क्षेत्र में एक भूगर्भीय खनिज पट्टी अरावली पर्वत के उत्तर-पश्चिम में 13 तथा दक्षिण-पूर्व में 20 जिले स्थित है।
अरावली प्रदेश की प्रमुख झील नक्की झील है। जो कि राज्य की सबसे ऊंची झील है।
अरावली प्रदेश में राज्य की सबसे मीठी व सबसे बड़ी कृत्रिम झील जयसमंद झील स्थित है।

अरावली के प्रमुख दर्रे 

जीलवा की नाल ( पगल्या)- राजसमंद में स्थित यह नाल मारवाड़ व मेवाड़ को जोड़ती है।
जीलवाड़ा की नाल/पगल्या की नाल- मेवाड़ के दक्षिणी भाग में स्थित यह दर्रा मेवाड़ से गुजरात जाने का रास्ता प्रदान करता है।
• बर दर्रा- पाली में स्थित इस दर्रे से एन.एच. 14 गुजरता है।
हाथीगुडा की नाल- पाली में स्थित यह नाल पाली और राजसमंद को जोड़ती है तथा यह देसुरी के उत्तर में स्थित है।
हाथी गुढ़ा की नाल- यह दर्रा एन.एच. पर 76 सिरोही को गोगुन्दा (उदयपुर) से जोड़ता है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान सीरीज फुलवारी की नाल- उदयपुर में स्थित इस नाल से सोम, मानसी, वाकल नदियों का उद्गम होता है।
सोमेश्वर की नाल, केलवा की नाल, केवड़ा की नाल, देवारी की नाल- ये सभी नाल उदयपुर में स्थित है।
गोरमघाट एवं खामलीघाट दर्रा- यह दर्रा राजसमंद जिले में जोधपुर, उदयपुर रेलमार्ग पर स्थित है।
ये दर्रे मारवाड़ जंक्शन (पाली) को आमेर राजसमंद से जोड़ते है।
कचबाली की नाल, पीपली की नाल, उदाबरी की नाल, बार, परवेरिया, शिवपुर घाट, सुराघाट, देबारी- ये सभी अजमेर में स्थित है।
ऊदबारी दर्रा, पीपली दर्रा, कुचवारी दर्रा, सरूपाघाट दर्रा- ये समस्त दर्रे अजमेर को मसूदा से जोड़ते है।
शिवपुरा घाट दर्रा व सूरा घाट दर्रा- ये दर्रे अजमेर को मेवाड़ से जोड़ते है।
रामगढ़ दर्रा, चेतावास दर्रा, लाखेरी दर्रा, खट-खट दर्रा ये बूंदी में स्थित है।
सेंदड़ा स्टेशन के पास की चट्टानें सर्पाकार आकृति में पाई जाती है।

अरावली प्रदेश को निम्नांकित तीन प्रमुख उप-प्रदेशों में विभक्त किया जाता है
1. दक्षिणी अरावली प्रदेश
2. मध्य अरावली प्रदेश
3. उत्तरी अरावली प्रदेश

दक्षिणी अरावली प्रदेश 

दक्षिणी अरावली पर्वतमाला का प्रदेश अरावली पर्वतमाला का सबसे ऊँचा क्षेत्र है, जिसकी औसत ऊँचाई 1000 मीटर है।
इस क्षेत्र में इस क्षेत्र की ही नहीं अपितु पूरे राजस्थान की सबसे ऊँची चोटी 'गुरू शिखर' स्थित है जिसकी ऊँचाई 5,650 फीट या 1722 मीटर है।
इसी कारण इसे एक इन्सेलबर्ग/बैथालिक की संज्ञा दी जाती है।
 गुरूशिखर की ऊँचाई 1722 मीटर है परन्तु इस चोटी के ऊपर 'दत्तात्रय ऋषि' का 5 मीटर ऊँचा मंदिर बना हुआ है जिसे जोड़ने के बाद गुरूशिखर की ऊँचाई 1727 मीटर मानी जाती है।
गुरू शिखर के नीचे ही राजस्थान का एकमात्र पर्वतीय स्थल माउण्ट आबू स्थित है।
यहाँ की अन्य श्रेणियाँ सेर (1597 मीटर), अचलगढ़ (1380 मीटर), देलवाड़ा (1442 मीटर), आबू (1295 मीटर) और ऋषिकेश (1017 मीटर) है।
उदयपुर- राजसमंद क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर जरगा पर्वत है, जिसकी ऊँचाई 1431 मीटर है, यहाँ की अन्य श्रेणियाँ कुम्भलगढ़ (1224 मीटर), लीलागढ़ (874 मीटर), नागपानी (867 मीटर), कमलनाथ की पहाड़ी (1001 मीटर), सज्जनगढ़ (938 मीटर) है।
जयसमंद झील के चारों ओर पहाड़ियाँ 820 मीटर तक ऊँचाई वाली हैं।
• आबू पर्वत क्षेत्र के पश्चिम में जसवन्तपुरा पर्वतीय क्षेत्र में मुख्यतया डोरा पर्वत (869 मीटर) है।
सिवाना पर्वतीय क्षेत्र में मुख्यतः गोलाकार पहाड़ियाँ हैं, इन्हें छप्पन की पहाड़ियाँ एवं नाकोड़ा पर्वत के नाम से जाना जाता है।
जवाई नदी घाटी के दक्षिण में जालोर पर्वत क्षेत्र के इसराना भाकर (839 मीटर), रोजा भाकर (730 मीटर) एवं झारोला पहाड़ (588 मीटर ) है।

मध्य अरावली प्रदेश 

मध्य अरावली प्रदेश में स्थित पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 700 मीटर है तो घाटियों की औसत ऊँचाई 550 मीटर है जिनका निर्माण ग्रेनाइट चट्टानों से हुआ है अतः यहाँ की चट्टानों में संगमरमर, क्वार्टजाइट व ग्रेनाइट की प्रधानता है।
अरावली पर्वत माला में मध्य अरावली प्रदेश में ही सर्वाधिक अन्तराल पाया जाता है।
इस भाग की सबसे ऊँची चोटी मारायजी (टॉड़गढ़) अजमेर 933.72 मीटर है तथा इस भाग का केन्द्रिय भाग तारागढ़ (अजमेर) 870 मीटर है।
अजमेर के दक्षिण-पश्चिम भाग में तारागढ़ और पश्चिम में सर्पिलाकार पर्वत श्रेणियाँ नाग पहाड़ (795 मीटर) कहलाती है।

उत्तरी अरावली प्रदेश

 • उत्तरी अरावली की औसत ऊँचाई 450 मीटर है जिसका 25 निर्माण क्वार्टजाइट एवं फाईलाइट शैलों से हुआ है।
इस भाग की सबसे ऊँची चोटी सीकर जिले में स्थित रघुनाथगढ़ (1055 मीटर) है।
 इस प्रदेश के केन्द्रीय भाग में शेखावाटी की पहाड़ियाँ विस्तारित है।
जयपुर में प्रमुख पर्वत शृंखलाएँ बरवाड़ा (786 मीटर), मनोहरपुरा ( 747 मीटर), जयगढ़ (648 मीटर), नाहरगढ़ (599 मीटर ) आदि हैं।
अलवर में पुनः अरावली श्रेणियों का सघन विस्तार है यहाँ के प्रमुख शिखर बैराठ (792 मीटर), बिलाली (775 मीटर), सिरावास (651 मीटर), भानगढ़ (649 मीटर), अलवर किला (597 मीटर) है।
अरावली के प्रमुख पठार उड़िया का पठार- सिरोही में स्थित यह राज्य का सबसे ऊंचा पठार है।
इसकी ऊंचाई 1360 मी. है।

आबू का पठार

सिरोही में स्थित यह राज्य का दूसरा सबसे ऊंचा पठार है।
इसकी ऊंचाई 1200 मी. है।

भोराठ का पठार

उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में गोगुन्दा व कुंभलगढ़ के मध्य में स्थित है।
इसकी ऊंचाई 600 मी. है।

ऊपरमाल का पठार

भैंसरोडगढ़ से बिजौलिया तक का क्षेत्र जो आगे चलकर मालवा के पठार में मिल जाता है।
मनदेसरा/मानदेसरा का पठार- यह भैंसरोड़गढ (चितौड़गढ) में स्थित है।

लासाड़िया पठार

यह जयसमंद झील के पूर्व में स्थित है।

मेसा का पठार

इस पर चितौड़गढ़ का किला स्थित है।
मगरा क्षेत्र- उदयपुर जिले के उत्तर-पश्चिमी भाग में पाली, राजसमंद से जुड़ा पर्वतीय क्षेत्र।
कांकणवाड़ी का पठार- यह सरिस्का (अलवर) में स्थित है।
क्रासका का पठार- सरिस्का (अलवर) में स्थित है।

पूर्वी मैदानी प्रदेश 

पूर्वी मैदानी प्रदेश राज्य के 23 प्रतिशत क्षेत्र में फैला हुआ है।
पूर्वी मैदानी प्रदेश में राज्य की 39 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
पूर्वी मैदानी प्रदेश में निम्न जिले शामिल है -  जयपुर, सवाईमाधोपुर, अलवर, दौसा, भरतपुर, टोंक, धौलपुर, बाँसवाड़ा, करौली और अजमेर।
पूर्वी मैदानी प्रदेश में आई जलवायु पाई जाती है।
पूर्वी मैदानी प्रदेश में वार्षिक वर्षा का औसत 50 से 80 सेमी है।
पूर्वी मैदानी प्रदेश में पाई जाने वाली प्रमुख मिट्टी जलोढ़ अथवा दोमट है।
पूर्वी मैदानी प्रदेश की प्रमुख फसल गेहूँ, जौ, चना, सरसों, बाजरा, दालें व गन्ना है।
पूर्वी मैदानी प्रदेश के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान कैवलादेव व रणथम्भौर है।
पूर्वी मैदान प्रदेश में बहने वाली प्रमुख नहर गुड़गाँव व भरतपुर नहर है।
चंबल बेसिन में 5-30 मीटर खण्डयुक्त बीहड़ भूमि को 'खादर' कहा जाता है।
पूर्वी मैदानी प्रदेश का ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है, इस कारण इस प्रदेश में बहने वाली नदियाँ अपना जल बंगाल की खाड़ी में लेकर जाती है।
पूर्वी मैदान का भाग आगे चलकर गंगा यमना दोआब में मिल जाता है।

दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश 

दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश राज्य के 7 प्रतिशत (6.89 प्रतिशत ) क्षेत्र में फैला हुआ है।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश में राज्य की 11 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश में शामिल जिले - कोटा, भीलवाड़ा, बूंदी, चितौडगढ़, बारां, बांसवाड़ा, झालावाड़
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश में अतिआर्द जलवायु पाई जाती है।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश में वार्षिक वर्षा का औसत 80 से 2. 120 सेमी. है।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश में पाई जाने वाली प्रमुख मिट्टी काली, लाल व कच्छारी है।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश की प्रमुख फसल मसाले हैं।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान - दर्रा राष्ट्रीय उद्यान व चंबल घड़ियाल अभयारण्य है।
 दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश की प्रमुख वनस्पति उष्ण शुष्क पतझड़ वाले वन हैं।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश में बहने वाली प्रमुख नदियां चंबल, पार्वती व कालीसिंध नदी हैं।
विध्याचल पर्वत- राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी सीमा (मध्यप्रदेश) में स्थित क्षेत्र।
हाड़ौती पठार के अन्तर्गत ऊपरमाल का पठार और मेवाड़ का पठार जिसमें राजनीतिक दृष्टि से झालावाड़ से बूंदी और कोटा, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा और बॉसवाड़ा के कुछ भाग सम्मिलित हैं।
पठारी भाग आगे चलकर मालवा के पठार में मिल जाता है।
मालवा का पठार दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में स्थित है।
इसकी . कुल ऊँचाई 360 से 460 मीटर है।
दक्षिणी-पूर्वी पठार (हाड़ौती) में अनेक पर्वत श्रेणियाँ हैं, जिनमें मुकन्दरा की पहाड़ियाँ और बँदी की पहाड़ियाँ प्रमुख हैं।
ये पहाड़ियाँ अर्द्धचन्द्राकार रूप में विस्तृत हैं।
इन श्रेणियों की औसत ऊँचाई 300 से 350 मीटर तथा इनका सर्वोच्च शिखर सतूर (353 मीटर) है, जो बूंदू नगर से 13 किमी. पश्चिम में है।

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