भारत के उद्योग - Bharat Ke Udyog इस पोस्ट में आप Bharat ke udyog in Hindi,gk, list, india gk, notes भारत के उद्योग PDF,File भारत के उद्योगों के बारे में जानकारी प्राप्त करोगे हमारी
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भारत के उद्योग - Bharat Ke Udyog PDF
किसी विशेष क्षेत्र में भारी मात्रा में सामान का निर्माण/उत्पादन या वृहद रूप से सेवा प्रदान करने के मानवीय कर्म को उद्योग (Industry) कहते हैं।उद्योगों के कारण गुणवत्ता वाले उत्पाद सस्ते दामों पर प्राप्त होते हैं।
इससे लोगों का रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है और जीवन सुविधाजनक होता चला जाता है।
औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका में नये-नये उद्योग-धन्धे आरम्भ हुए।
इसके बाद आधुनिक औद्योगीकरण ने पैर पसारना अरम्भ किया।
इस काल में नयी-नयी तकनीकें एवं उर्जा के नये साधनों के आगमन ने उद्योगों को जबर्दस्त बढावा दिया।
उद्योगों के दो मुख्य पक्ष हैं:
1) भारी मात्रा में उत्पादन - उद्योगों में मानक डिजाइन के उत्पाद भारी मात्रा में उत्पन्न किये जाते हैं।
इसके लिये स्वतचालित मशीनें एवं असेम्बली-लाइन आदि का प्रयोग किया जाता है।
2) कार्य का विभाजन - उद्योगों में डिजाइन, उत्पादन, मार्कटिंग, प्रबन्धन आदि कार्य अलग-अलग लोगों या समूहों द्वारा किये जाते हैं।
जबकि परम्परागत कारीगर द्वारा निर्माण में एक ही व्यक्ति सब कुछ करता था/है।
जबकि परम्परागत कारीगर द्वारा निर्माण में एक ही व्यक्ति सब कुछ करता था/है।
इतना ही नहीं, एक ही काम (जैसे उत्पादन) को छोटे-छोटे अनेक कार्यों में बांट दिया जाता है।
भारत के उद्योग
भारत औद्योगिक राष्ट्र नहीं हैं।यह मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र हैं।
आजादी से पहले भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।
आधुनिक उद्योगों या बड़े उद्योगो की स्थापना भारत में 19वीं शताब्दी के मध्य शुरू हुई।
जब कलकत्ता व मुम्बई में यूरोपीय व्यवसायियों या उद्योगों के द्वारा सूती वस्त्र उद्योगो की स्थापना हुईं।
प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप गुजरात में सूती वस्त्र, बंगाल में जूट की वस्तुयें, उड़ीसा व बंगाल में कोयला उद्योग, असम में चाय उद्योग का विशेष विकास हुआ।
उस समय सूती वस्त्र के अलावा शेष सभी उद्योगों पर विदेशियों का अधिकार था।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद लौह-इस्पात, सीमेंट, कागज, शक्कर, कांच, वस्त्र, चमड़ा उद्योगों में उन्नति हुई।
दूसरे विश्वयुद्ध के समय भारत के ओद्यौगिक विकास के मार्ग में कई कठिनाईयां आयी जैसे:-
1) तकनीकी ज्ञान की कमी
2) यातायात के साधनों की कमी
3) बड़े उद्योगो को सरकार द्वारा हतोत्साहित करना।
दोनो महायुद्धों के बीच आजादी से पहले उद्योगों का सर्वांधिक विकास हुआ।
विश्व युद्ध के दौरान हिन्दुस्तान एयर क्राफ्ट कम्पनी, एल्युमिनियम उद्योग, अस्त्र-शस्त्र उद्योगों का विकास हुआ।
विश्व युद्ध के दौरान हिन्दुस्तन एयर क्राफ्ट कम्पनी, एल्युमिनियम उद्योग, अस्त्र-शस्त्र उद्योग का विकास हुआ।
रोजर मिशन की सिफारिश पर जो सन् 1940 में भारत आया था।
इसने भारत के उद्योगों के विस्तार पर बल दिया था।
लोहा इस्पात उद्योग
देश में पहला लौह इस्पात कारखाना 1874 ईस्वी में बराकर नदी के किनारे कुल्टी (आसनसोल, पश्चिम बंगाल) नामक स्थान पर बंगाल आयरन वर्क्स के रूप में स्थापित किया गया था।बाद में यह कंपनी फंड के अभाव में बंद हो गई तो इसे बंगाल सरकार ने अधिग्रहण कर दिया और इसका नाम बराकर आयरन वर्क्स रखा।
देश में सबसे पहला बड़े पैमाने का कारखाना 1907 ईस्वी में तत्कालीन बिहार राज्य की में स्वर्ण रेखा नदी की घाटी में साकची नामक स्थान पर जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित किया गया था।
स्वतंत्रता के पूर्व स्थापित लोहा इस्पात कारखाना
भारतीय लोहा इस्पात कंपनी -
इसकी स्थापना 1918 ई. में पश्चिम बंगाल की दामोदर नदी घाटी में हीरापुर (बाद में इसे बर्नपुर कहा गया) नामक स्थान पर की गई थी।यहां 1922 ई. से उत्पादन शुरू हुआ आगे चलकर कुल्टी, बर्नपुर तथा हीरापुर स्थित संयंत्रों को इसमें मिला दिया गया।
मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स -
1923 ईस्वी में मैसूर राज्य (वर्तमान कर्नाटक) के भद्रावती नामक स्थान पर स्थापित की गई थी इसका वर्तमान नाम विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड है।
स्टील कॉरपोरेशन ऑफ बंगाल -
इसकी स्थापना 1937 बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) में की गई थी।बाद में 1953 ई. में इसे भारतीय लौह-इस्पात कंपनी में मिला दिया गया था।
स्वतंत्रता के पश्चात स्थापित लौह इस्पात कारखाना -
दूसरी पंचवर्षीय योजना काल 1956-61 में स्थापित कारखाना
भिलाई इस्पात संयंत्र
इसकी स्थापना 1955 ई. में तत्कालीन मध्य प्रदेश के भिलाई (दुर्ग जिला, छत्तीसगढ़) में पूर्व सोवियत संघ की सहायता से की गई थी।हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड, दुर्गापुर
इसकी स्थापना 1956 ईस्वी. में पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर नामक स्थान पर ब्रिटेन की सहायता से की गई थी।तृतीय पंचवर्षीय योजना काल में स्थापित कारखाना
बोकारो स्टील प्लांट
इसकी स्थापना 1968 में तत्कालीन बिहार राज्य (अब झारखण्ड) के बोकारो नामक स्थान पर पूर्व सोवियत संघ की सहायता से की गई थी।चौथी पंचवर्षीय योजना काल में स्थापित कारखाना
सलेम इस्पात सयंत्र: सलेम (तमिलनाडु)विशाखापत्तन इस्पात सयंत्र: विशाखापत्तन (आंध्रा प्रदेश)
विजयनगर इस्पात सयंत्र: हास्पेट वेलारी जिला (कर्नाटक)
स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (SAIL):
24 जनवरी 1973 ईस्वी.को 2000 करोड़ की पूंजी के साथ भारत इस्पात प्रधिकरण (स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया) को भिलाई, दुर्गापुर, भोकारो, राउरकेला, बर्नपुर, सलेम एंव विश्वेश्वरैया लौह इस्पात कारखाना को एक साथ मिलाकर संचालन करने की जिम्मेदारी दी गई।वर्ष 2014 में भारत चीन, जापान तथा अमेरिका के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है।
स्पंज आयरन के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है।
भारत का पहला तटवर्ती इस्पात कारखाना विशाखापट्नम (आंध्रा) में लगाया गया।
एल्युमीनियम उद्योग -
भारत में एलुमिनियम का पहला कारखाना 1937 में पश्चिम बंगाल के आसनसोल के निकट जेके नगर में स्थापित किया गया था।1938 में 4 कारखाने, तत्कालीन बिहार राज्य के मुरी, केरल के अंल्वाय, पश्चिम बंगाल के वेल्लूर तथा उड़ीसा के हीराकुंड में स्थापित किए गए।
हिंदुस्तान एलुमिनियम कॉरपोरेशन (हिंडालको) की स्थापना तत्कालीन मध्य प्रदेश के कोरबा नामक स्थान पर की गई।
मद्रास एलुमिनियम कंपनी लिमिटेड तमिलनाडु के मैटूर में स्थापित की गई
एलुमिनियम उद्योग
नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO), देश का सबसे बड़े समन्वित, एलुमिनियम संयंत्र परिसर का गठन 7 जनवरी 1981 को किया गया था।
इसका पंजीकृत कार्यालय भुवनेश्वर (ओडिशा) में है।
सूती वस्त्र उद्योग:
आधुनिक ढंग से सूती वस्त्र की पहली मिल की स्थापना 1818 में कोलकाता के समीप फोर्ट ग्लास्टर में की गई थी।किंतु यह असफल रही थी।सबसे पहला सफल आधुनिक सूती कपड़ा कारखाना 1854 में मुंबई में कवासजी डावर द्वारा खोला गया।
इसमें 1856 ई. से उत्पादन प्रारंभ हुआ।
सूती वस्त्र उद्योग का सर्वाधिक केंद्रीकरण महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्य में है।
अन्य प्रमुख राज्य हैं - पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल व उत्तर प्रदेश।
मुंबई को भारत के सूती वस्त्रों की राजधानी के उपनाम से जाना जाता है।
कानपुर को उत्तर भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है।
कोयंबटूर को दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है।
अहमदाबाद को भारत का बोस्टन कहा जाता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कपड़ा उद्योग का स्थान कृषि के बाद दूसरा है।
यह भारत का सबसे प्राचीन उद्योग है।
यह देश का सबसे बड़ा संगठित एवं व्यापक उद्योग है।
यह उद्योग देश में कृषि के बाद रोजगार प्रदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
उद्योग उत्पादन में वस्त्र उद्योग का योगदान 14% है।
देश के सकल घरेलू उत्पाद में यह उद्योग 4% तथा देश की निर्यात आय में 11% योगदान है।
रोजगार प्रदान करने की दृष्टि से कृषि के बाद वस्त्र उद्योग दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
जूट उद्योग
सोने का रेशा के नाम से मशहूर जूट के रेशों से सामानों का निर्माण करने में भारत का विश्व में प्रथम स्थान प्राप्त है।इसका पहला कारखाना कोलकाता के समीप रिशरा नामक स्थान पर 1869 में खोला गाया था।
भारतीय जूट निगम की स्थापना 1971 मेंजूट के आयात, निर्यात तथा आंतरिक बाजार की देखभाल करने के लिए की गई थी।
भारत विश्व के 35% जूट के सामानों का निर्माण करता है और दूसरा बड़ा निर्यातक राष्ट्र है।
जूट उद्योग से सबंधित प्रमुख स्थान:
अंतरराष्ट्रीय जूट संगठन की स्थापना 1984 में हुई थी।
इसका मुख्यालय बांग्लादेश के ढाका में है।
चीनी उद्योग
भारत में आधुनिक चीनी उद्योग की शुरुआत 1930 में बिहार में पहली चीनी मिल की स्थापना के साथ हुई।सीमेंट उद्योग
विश्व में सबसे पहले आधुनिक रूप से सीमेंट का निर्माण 1824 में ब्रिटेन के पोर्टलैंड नामक स्थान पर किया गया था।भारत में आधुनिक ढंग से सीमेंट बनाने का पहला कारखाना 1904 में मद्रास में लगाया गया था जो असफल रहा।
मद्रास के कारखाने के बाद 1912-13 की अवधि में इंडियन सीमेंट कंपनी लिमिटेड द्वारा गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर कारखाने की स्थापना की गई।
इसमें 1914 से उत्पादन प्रारंभ हुआ।
एसोसिएट सीमेंट कंपनी लिमिटेड की स्थापना 1936 में की गई थी।
कागज उद्योग
कागज का पहला सफल कारखाना 1879 में लखनऊ में लगाया गया।मध्यप्रदेश के नेपानगर में अखबारी कागज तथा होशंगाबाद में नोट छापने के कागज बनाने का सरकारी कारखाना है।
रासायनिक उर्वरक उद्योग
ऐतिहासिक रूप से देश में सुपर फास्फेट उर्वरक का पहला कारखाना 1996 में तमिलनाडु के रानीपेट नामक स्थान पर स्थापित किया गया था।1944 में कर्नाटक के बैलेगुला नामक स्थान पर मैसूर केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स के नाम से अमोनिया उर्वरक का कारखाना लगाया गया।
1947 में अमोनिया सल्फेट का पहला कारखाना केरल के अलवाय नामक स्थान पर खोला गया।
भारतीय उर्वरक निगम की स्थापना 1951 में की गई।
इसके तहत एशिया का सबसे बड़ा उर्वरक संयंत्र सिंदरी में स्थापित किया गया।
भारत पोटाश उर्वरक के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर है।
भारत में नाइट्रोजन उर्वरक की खपत सबसे अधिक है।
भारत में 2010 11 में NPK उर्वरकों की प्रति हेक्टेयर खपत 140.14 किग्रा थी।
भारत में प्रति हेक्टेयर पूर्वक खपत में प्रथम स्थान पंजाब का है और दूसरा एवं तीसरा स्थान क्रमश: आंध्रप्रदेश तथा हरियाणा का है।
कोक आधारित उर्वरक इकाइयां तालचर (उड़ीसा), रामागुंडम (आंध्रप्रदेश) तथा कोरबा (छत्तीसगढ़) में अवस्थित है।
क्रभको का गैस आधारित यूरिया-अमोनिया सयंत्र हजीरा (गुजरात) में है।
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर तथा जगदीशपुर के कारखाना भी गैस आधारित है।
जलयान निर्माण उद्योग:
भारत में जलयान निर्माण का प्रथम कारखाना 1941 ई. में सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी द्वारा विशाखापट्टनम में स्थापित किया गया था।1952 में भारत सरकार द्वारा इसका अधिग्रहण करके हिंदुस्तान शिपयार्ड विशाखापट्टनम नाम दिया गया था।
सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य इकाइयां जो जलयानों का निर्माण करती हैं -
गर्डे नरिच वर्कशॉप लिमिटेड - कोलकात्ता
गोवा शिपयार्ड लिमिटेड - गोवा
मंझ गांव डाक लिमिटेड - मुम्बई
वायुयान निर्माण उद्योग
भारत में हवाई का निर्माण का प्रथम कारखाना 1940 में बेंगलुरु में हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट कंपनी के नाम से स्थापित किया गया है।अब इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के नाम से जाना जाता है।
आज बेंगलुरु में ही 5 इकाइयां तथा कोरापुट, कोरवा, नासिक, बैरकपुर, लखनऊ, हैदराबाद तथा कानपुर में 11 अन्य वायुयानों के निर्माण कार्य में सलंग्न है।
मोटरगाड़ी उद्योग
मोटरगाड़ी उद्योग को विकास उद्योग के नाम से जाना जाता है।इससे सबंधित प्रमुख इकाइयां -
हिंदुस्तान मोटर - (कोलकत्ता)
प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स लि. - (मुंबई)
अशोक लीलैंड - (चेन्नई)
टाटा इंजिनियरिंग एन्ड लोकोमोटिव कम्पनी लि. - (जमशेदपुर)
महिंद्रा एन्ड महिंद्रा लिमिटेड - (पुणे)
मारुती उद्योग लि. - गुड़गांव (हरियाणा)
सनराइज इंडस्ट्रीज - (बंगलुरु)
दवा निर्मण उद्योग
प्रमुख स्थान - मुंबई, दिल्ली, कानपूर, हरिद्वार, ऋषिकेश, अहमदाबाद, पुणे, मथुरा एंव हैदराबाद।शीशा उद्योग
भारत में शीशा उद्योग का केन्द्रीकरण रेन की सुविधा वाले स्थानों में देखने को मिलता है।इस उद्योग का विकास मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र व तमिलनाडु राज्य में हुआ है।
फिरोजाबाद एंव शिकोहाबाद भारत में शीशा उद्योग के महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
अभियांत्रिकी उद्योग
देश में हटिया, दुर्गापुर, अजमेर, जादवपुर आदि प्रथम स्थान पर है।
भारी इंजीनयरिंग निगम लिमिटेड (HEC) रांची की स्थापना 1958 में की गई थी।
कुटीर उद्योग बोर्ड : 1948
केंद्रीय सिल्क बोर्ड : 1949
अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड : 1950
अखिल भारतीय खादी एंव ग्रामोद्योग बोर्ड : 1954
अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड : 1953
लघु उद्योग बोर्ड : 1954
केंद्रीय विक्रय संगठन : 1958
भारी इंजीनयरिंग निगम लिमिटेड (HEC) रांची की स्थापना 1958 में की गई थी।
कुटीर उद्योग बोर्ड : 1948
केंद्रीय सिल्क बोर्ड : 1949
अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड : 1950
अखिल भारतीय खादी एंव ग्रामोद्योग बोर्ड : 1954
अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड : 1953
लघु उद्योग बोर्ड : 1954
केंद्रीय विक्रय संगठन : 1958
रेल उपकरण उद्योग
चित्तरंजन (पश्चिम बंगाल) रेल इंजन बनाने का सबसे पुराना कारखाना है।
इसकी स्थापना 26 जनवरी 1950 के दिन चित्तरंजन लोकोमेटिव वर्क्स नाम से शुरू हुई।
वर्तमान यहां विधुत इंजन का निर्माण किया जा रहा है।
डीज़ल से चलने वाले इंजन निर्माण वाराणसी में होता ही।
रेलवे इंजन का निर्मण कार्य जमशेदपुर (झारखण्ड) में भी किया जाता है।
रेल के डिब्बे बनाने प्रमुख केंद्र चेन्नई के समीप पेरंबूर नामक स्थान पर 1952 में स्थापित किया गया और इसने उत्पादन की शुरुआत 2 अक्टूबर 1955 से हुई इसके अन्य प्रमुख केंद्र बेंगलुरु तथा कोलकाता में है।
पंजाब के कपूरथला में इंट्री कल कोच फैक्ट्री की स्थापना की गई है।
रायबरेली उत्तर प्रदेश कचरापारा पश्चिम बंगाल में रेलवे कोच फैक्ट्री की नई उत्पादन इकाइयां लगाई गई है।
केरल के पाला कार्ड में भी रेल कोच फैक्ट्री लगाई जा रही है।
बिहार के मंडोरा में डीजल इंजन में मधेपुरा में विद्युत इंजन कारखाना लगाया जा रहा है।
छपरा बिहार में रेल वहीं फैक्ट्री स्थापित की गई है।
पश्चिम बंगाल के धनकुनी में विद्युत व डीजल इंजन के अवयव बनाने की फैक्ट्री लगाई जा रही है
आईआईटी रुड़की मैं देश के पहले रेलवे इंजन थॉमसन को सुरक्षित किया गया है।
ऊनी वस्त्र उद्योग भारत में उन्नी वस्त्र की पहली मेल 18 क्षेत्र में कानपुर में स्थापित की गई परंतु इस उद्योग का वास्तविक विकास 1950 के बाद ही हुआ।
पंजाब में लुधियाना जालंधर धारीवाल अमृतसर इस दोगे महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
ब्रिटेन अमेरिका कनाडा जर्मनी आदि भारतीय कालीनों के महत्वपूर्ण आयातक हैं।
मूंगा रेशम उत्पादन में भारत को एकाधिकार प्राप्त है।
कर्नाटक देश का 41% से अधिक कच्चा रेशम उत्पादन करता है।
यहां शाहतूती रेशम बनाया जाता है।
यह देश का 56% रेशमी धागा बनाया जाता है।
भारत में कुल कपड़ा निर्यात में रेशमी वस्त्रों का योगदान लगभग 3% है।
गैर शहतुती रेशम मुख्य असम बिहार और मध्य प्रदेश से प्राप्त होता है।
कानपुर चर्म उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है।
यह जूते बनाने के लिए प्रसिद्ध है।
2. आधारभूत उद्योग : ये भारी उद्योग हैं जो अन्य उद्योगों के लिए आधारभूत हैं।
जैसे-लोहा तथा इस्पात उद्योग।
3. सहकारी उद्योग : ये उद्योग लोगों के समूह द्वारा व्यवस्थित किए जाते हैं जो कि कच्चे माल के उत्पादक होने के साथ-साथ एक दूसरे के सहयोग से उद्योगों को चलाने में भी मदद करते हैं।
4. उपभोक्ता उद्योग : ये उद्योग प्रमुख रूप से लोगों के उपभोग के लिए वस्तुएँ प्रदान करते हैं।
5. कुटीर उद्योग : ये उद्योग घरों या गाँवों में छोटे पैमाने पर चलाए जाते हैं।
6. भारी उद्योग : ये उद्योग भारी कच्चे माल का प्रयोग कर भारी तैयार माल का निर्माण करते है।
जैसे : लोहा और इस्पात उद्योग।
7. उद्योग : कारखाने की उत्पादन क्रिया के द्वारा कच्चे माल के मूल्य में वृद्धि को उद्योग कहते हैं
8. संयुक्त उद्योग : वे उद्योग जो राज्य सरकार तथा निजी क्षेत्रा के संयुक्त प्रयास से चलाए जाते हैं।
9. हल्के उद्योग : ये उद्योग कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं। जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, पंखे आदि।
10. बड़े पैमाने के उद्योग : हर इकार्इ में बड़ी संख्या में लोगों को राजगार देने तथा उत्पादन स्तर में वृद्धि करने वाले उद्योग।
जैसे जूट या पटसन उद्योग।
11. खनिज आधारित उद्योग : जो उद्योग खनिज उत्पादों को तैयार माल में परिवर्तित करते हैं।
12. सार्वजनिक क्षेत्रा के उद्योग : इन उद्योगों का स्वामित्व केन्द्र तथा राज्य दोनों सरकारों के पास होता है। जैसे- बी.एच.र्इ.एल., एच.र्इ.सी. तथा एन.टी.पी.सी.।
13. प्राथमिक उद्योग : ये कच्चे माल के उत्पादन के उद्योग हैं।
14. निजी क्षेत्रा के उद्योग : इन उद्योगों का स्वामित्व तथा नियंत्राण एक व्यक्ति, फर्म या कंपनी के हाथ में होता है।
15. द्वितीयक उद्योग : ये उद्योग प्राथमिक उद्योगों द्वारा तैयार किए माल का प्रयोग करके वस्तुओं का निर्माण करते हैं।
16. छोटे पैमाने के उद्योग : कम संख्या में लोगों को रोजगार देना तथा लगभग दो करोड़ पूँजी निवेश करने वाले उद्योग जैसे-सिले-सिलाए वस्त्रों का उद्योग।
पंजाब के कपूरथला में इंट्री कल कोच फैक्ट्री की स्थापना की गई है।
रायबरेली उत्तर प्रदेश कचरापारा पश्चिम बंगाल में रेलवे कोच फैक्ट्री की नई उत्पादन इकाइयां लगाई गई है।
केरल के पाला कार्ड में भी रेल कोच फैक्ट्री लगाई जा रही है।
बिहार के मंडोरा में डीजल इंजन में मधेपुरा में विद्युत इंजन कारखाना लगाया जा रहा है।
छपरा बिहार में रेल वहीं फैक्ट्री स्थापित की गई है।
पश्चिम बंगाल के धनकुनी में विद्युत व डीजल इंजन के अवयव बनाने की फैक्ट्री लगाई जा रही है
आईआईटी रुड़की मैं देश के पहले रेलवे इंजन थॉमसन को सुरक्षित किया गया है।
ऊनी वस्त्र उद्योग भारत में उन्नी वस्त्र की पहली मेल 18 क्षेत्र में कानपुर में स्थापित की गई परंतु इस उद्योग का वास्तविक विकास 1950 के बाद ही हुआ।
पंजाब में लुधियाना जालंधर धारीवाल अमृतसर इस दोगे महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
ब्रिटेन अमेरिका कनाडा जर्मनी आदि भारतीय कालीनों के महत्वपूर्ण आयातक हैं।
बिजली के सामान
भोपाल, हरिद्वार, रामचंद्रपुरम, हैदराबाद, तिरुचिरापल्ली तथा कोलकाता बिजली के सामान बनाने के महत्वपूर्ण केंद्र हैंटेलीफोन उद्योग
बंगलुरु तथा रूपनारायणपुर टेलीफोन उद्योग के महत्वपूर्ण केंद्र है।रेशम उद्योग
भारत एक ऐसा देश है जहां शहतूती, एरी, तसर एवं मूंगा सभी 4 किस्मों की रेशम का उत्पादन होता है।मूंगा रेशम उत्पादन में भारत को एकाधिकार प्राप्त है।
कर्नाटक देश का 41% से अधिक कच्चा रेशम उत्पादन करता है।
यहां शाहतूती रेशम बनाया जाता है।
यह देश का 56% रेशमी धागा बनाया जाता है।
भारत में कुल कपड़ा निर्यात में रेशमी वस्त्रों का योगदान लगभग 3% है।
गैर शहतुती रेशम मुख्य असम बिहार और मध्य प्रदेश से प्राप्त होता है।
चर्म उद्योग
भारत में चर्म उद्योग के मुख्य केंद्र कानपुर, आगरा, मुंबई, कोलकाता, पटना तथा बेंगलुरु में है।कानपुर चर्म उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है।
यह जूते बनाने के लिए प्रसिद्ध है।
उद्योगों से सबंधित कुछ परिभाषाएँ -
1. कृषि पर आधारित उद्योग : जो उद्योग कृषि उत्पादों को औद्योगिक उत्पादों में परिवर्तित करता है2. आधारभूत उद्योग : ये भारी उद्योग हैं जो अन्य उद्योगों के लिए आधारभूत हैं।
जैसे-लोहा तथा इस्पात उद्योग।
3. सहकारी उद्योग : ये उद्योग लोगों के समूह द्वारा व्यवस्थित किए जाते हैं जो कि कच्चे माल के उत्पादक होने के साथ-साथ एक दूसरे के सहयोग से उद्योगों को चलाने में भी मदद करते हैं।
4. उपभोक्ता उद्योग : ये उद्योग प्रमुख रूप से लोगों के उपभोग के लिए वस्तुएँ प्रदान करते हैं।
5. कुटीर उद्योग : ये उद्योग घरों या गाँवों में छोटे पैमाने पर चलाए जाते हैं।
6. भारी उद्योग : ये उद्योग भारी कच्चे माल का प्रयोग कर भारी तैयार माल का निर्माण करते है।
जैसे : लोहा और इस्पात उद्योग।
7. उद्योग : कारखाने की उत्पादन क्रिया के द्वारा कच्चे माल के मूल्य में वृद्धि को उद्योग कहते हैं
8. संयुक्त उद्योग : वे उद्योग जो राज्य सरकार तथा निजी क्षेत्रा के संयुक्त प्रयास से चलाए जाते हैं।
9. हल्के उद्योग : ये उद्योग कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं। जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, पंखे आदि।
10. बड़े पैमाने के उद्योग : हर इकार्इ में बड़ी संख्या में लोगों को राजगार देने तथा उत्पादन स्तर में वृद्धि करने वाले उद्योग।
जैसे जूट या पटसन उद्योग।
11. खनिज आधारित उद्योग : जो उद्योग खनिज उत्पादों को तैयार माल में परिवर्तित करते हैं।
12. सार्वजनिक क्षेत्रा के उद्योग : इन उद्योगों का स्वामित्व केन्द्र तथा राज्य दोनों सरकारों के पास होता है। जैसे- बी.एच.र्इ.एल., एच.र्इ.सी. तथा एन.टी.पी.सी.।
13. प्राथमिक उद्योग : ये कच्चे माल के उत्पादन के उद्योग हैं।
14. निजी क्षेत्रा के उद्योग : इन उद्योगों का स्वामित्व तथा नियंत्राण एक व्यक्ति, फर्म या कंपनी के हाथ में होता है।
15. द्वितीयक उद्योग : ये उद्योग प्राथमिक उद्योगों द्वारा तैयार किए माल का प्रयोग करके वस्तुओं का निर्माण करते हैं।
16. छोटे पैमाने के उद्योग : कम संख्या में लोगों को रोजगार देना तथा लगभग दो करोड़ पूँजी निवेश करने वाले उद्योग जैसे-सिले-सिलाए वस्त्रों का उद्योग।
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